देहरादून। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के स्थानीय सेवाकेन्द्र सुभाषनगर के सभागार में सत्संग में राजयोगिनी ब्रह्मकुमारी गीता बहन ने कहा कि शरीर में अंग तो अनेक होते हैं लेकिन मन एक ही होता है। इन अंगों में कभी कोई बीमारी लग जाती होगी। मगर मन का रोगी तो आज बच्चा बच्चा हो गया है। तनाव मन में, अवसाद मन में, चिंता मन में, दुख मन में, कड़वाहट मन में, घृणा, ईष्या, क्रोध मन में.., इतनी चीजें मन में भरी हुई हैं तो कण जितना मन, मण जितना हो जाता है। हम शरीर के सभी अंगों को संवारते हैं लेकिन दर्द भरे मन की कोई खबर नहीं लेते। डॉक्टर के पास जाएं तो वह भी मन के बजाए तन की जांच कर दवा पकड़ा देता है। मौके पर रमा, विजय, प्रीति, राकेश कपूर, सुलक्षणा, सरोजनी, पुष्पा, राजकुमार मौजूद थे।