देहरादून (गढ़वाल का विकास न्यूज)। जी हां, यह बात सच है। देवभूमि में एक ऐसा भी मंदिर है, जहां स्वयं पुजारी ने आंखो में पट्टी बांधकर पूजा-अर्चना की। यह मंदिर है लाटू देवता का, जिसके कपाट शुभ मुहूर्त में श्रद्धालुओ के लिए खोले गये। मंदिर के गर्भगृह के कपाट सालभर में एक ही दिन खुलते हैं और उसी दिन बंद किए जाते हैं। मंदिर छह माह तक खुला रहता है।
देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जनपद के देवाल ब्लॉक के बाण गांव में स्थित सुप्रसिद्ध लाटू देवता मंदिर के कपाट शुक्रवार को पूजा अर्चना के बाद दोपहर 12.30 बजे श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोले गए। मंदिर के पुजारी खीम सिंह ने आंखों पर पट्टी बांधकर मंदिर के अंदर प्रवेश कर दीप प्रज्ज्वलित व पूजा-अर्चना की। इससे पूर्व मंदिर परिसर में पं. हरिदत्त कुनियाल, उमेश कुनियाल, रमेश कुनियाल की ओर से आराध्य मां नंदा देवी के धर्म भाई लाटू देवता की वैदिक मंत्रोच्चारों के साथ पूजाएं संपादित कर हवन की आहुतियां अर्पित की गई। नंदा देवी व लाटू देवता के जयकारों के बीच श्रद्धालुओं ने मंदिर के प्रवेश द्वार से करीब 25 मीटर की दूरी से लाटू देवता के दर्शन किए। इस दौरान जयकारों से संपूर्ण क्षेत्र गुंजायमान हो गया। वाण क्षेत्र में लाटू देवता के प्रति लोगों में बड़ी श्रद्धा है। लोग अपनी मनोकामना लेकर लाटू देवता के मंदिर में आते हैं। कहते हैं यहां से मांगी मनोकामना जरूर पूरी होती है।
श्रद्धालु बाहर से ही करते हैं लाटू देवता के दर्शन
हिमालय की आराध्य मां नंदा के धर्मभाई माने जाने वाले लाटू देवता मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में देवाल ब्लॉक के वाण गांव में स्थित है। यह मंदिर समुद्र तल से 8500 फीट की ऊंचाई पर स्थित विशाल देवदार वृक्ष के नीचे एक छोटा मंदिर है। प्रत्येक 12 सालों में उत्तराखंड की सबसे लंबी श्री नंदा देवी की राजजात यात्रा का बारहवां पड़ाव वाण गांव है। लाटू देवता वाण गांव से होमकुंड तक नंदा देवी का अभिनंदन करते हैं। माना जाता है कि इस मंदिर के अंदर साक्षात रूप में नागराज मणि के साथ निवास करते हैं। श्रद्धालु साक्षात नाग को देखकर डरे न इसलिए मुंह और आंख पर पट्टी बांधी जाती है। यह भी कहा जाता है कि पुजारी के मुंह की गंध देवता तक न पहुंचे इसलिए पुजारी के मुंह पर पूजा अर्चना के दौरान भी पट्टी बंधी रहती है। लाटू देवता मंदिर में मूर्ति के दर्शन नहीं किए जाते हैं। पुजारी जहां आंखों पर पट्टी बांधकर पूजा करते हैं वहीं श्रद्धालु भी बाहर से ही देवता के दर्शन कर सकते हैं।