एक लाख हेक्टेयर कृषि भूमि भी हो गयी बंजर
देहरादून। नाबार्ड ने वार्षिक स्टेट फोकस पेपर में राज्य की स्थिति को लेकर कड़वा सच सामने आया हैं। आज जारी फोकस पेपर में जहां 968 गांव पूरी तरह खाली होकर भूतगांव (घोस्ट विलेज) बन गये हैं, वहीं राज्य गठन के बाद के इन वर्षो में एक लाख हेक्टेयर कृषि भूमि भी बंजर हो गयी है। पर्वतीय क्षेत्र की छोटी जोतों को समय रहते नहीं बचाया गया तो सरकारी प्रयास धरे के धरे रह जाएंगे। नाबार्ड ने कृषि क्षेत्र की विकास की संभावनाओं का खाका खींचा है। नाबार्ड की ओर से इस आने वाले वित्त वर्ष के लिए 20301.87 करोड़ की ऋण संभावनाओं को सामने रखा जो चालू वित्त वर्ष से 8.8 फीसद अधिक है।
बुधवार को चकराता रोड स्थित एक होटल में आयोजित कार्यक्रम में वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने नाबार्ड के फोकस पेपर का लोकार्पण किया। पंत ने फोकस पेपर की तारीफ करते हुए कहा कि बहुत अध्ययन के बाद यह तैयार किया गया और इसके अनुसार हम काम कर पाये तो हमारे कृषि क्षेत्र देश में नयी पहचान बना सकेंगे। इस फोकस पेपर का सार ‘‘जल संरक्षण-प्रति बूंद अधिक पैदावार रखा गया है। पेपर में कहा गया है कि उत्तराखंड का सकल घरेलू उत्पाद में चक्रवृद्धि वार्षिक दर 2011-12 में 7.14 पर थी। सकल घरेलू उत्पाद में प्राथमिक क्षेत्र का हिस्सा इसी वर्ष 13.16 फीसद था, जो 2016-17 में घटकर 9.92 फीसद पर आ गया है। कृषि क्षेत्र पहाड़ी इलाकों से बाहरी प्रवास के कारण बर्बाद होने की बाद भी पेपर में कही गयी है। पेपर में एक तय बहुत ही चिंताजनक सामने आया है। इसमें कहा गया है कि राज्य गठन के बाद एक लाख हेक्टेयर भूमि बंजर हो गयी और 968 गांव भूतगांव होकर रह गये। इतना होने के बाद भी राज्य की 45 फीसद आजीविका कृषि पर ही निर्भर है। चिंताजनक बाद यह भी है कि राज्य में बंजर भूमि का आकलन करने के बाद खेती के लिए कुल सात लाख हेक्टेयर भूमि उपयोग हो रही है, जो कुल भूमि का 12 फीसद है। पेपर के अनुसार भूधारिता में लघु एवं सीमांत की हिस्सेदारी 91 फीसद है। फसलों का सही चयन नहीं होने की वजह से इतनी अधिक भूमि में भी जीवन यापन लायक आय नहीं हो पाती। रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि क्षेत्र को समृद्ध करने के लिए पानी की उपयोगिता पर बहुत ध्यान देने की जरूरत है। पर्वतीय गांवों में घराटो को समृद्ध करके स्वरोजगार व विद्युत आपूत्तर्ि की सलाह दी गयी है। इसके साथ ही पानी की बचत करने वाले उपकरणों ड्रिप व स्प्रिंकलर व वष्ा जल संचयन के उपकरणों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहन की सिफारिश की गयी है। इस मौके पर एक विस्तृत प्रजेंटेशन भी दिया गया, जिसमें राज्य की आर्थिकी को बढाने के लिए एक खास माडल पर काम करने की जरूरत बतायी गयी है। कार्यशाला में वित्त मंत्री के साथ ही नाबार्ड के सीजीएम डीएन मगर, एजीएम एससी गर्ग, आरबीआई के जीएम सुब्रत दास, नाबार्ड के डीजीएम एचके सबलानियां सहित उद्यान निदेशक डा. बीएस नेगी व उद्योग अपर निदेशक सुधीर नौटियाल सहित बैंको के प्रतिनिधि भी मौजूद थे।
फसली ऋण के लिए 6843 करोड़ का अनुमान
देहरादून। नाबार्ड के फोकस पेपर में अनुमानित किये गये 20301 करोड़ के ऋण को विभिन्न उपयोगों के लिए चाहा गया है। इसमें फसली ऋण के रूप में 6843.20 करोड़ देने की सिफारिश की गयी है। जबकि कृषि आवधिक ऋण के लिए 1839 करोड़, कृषि संबंधित आधारभूत संरचनाओं के लिए 1133 करोड़, सहायक गतिविधियों के लिए 658 करोड़, सूक्ष्म व लघु उद्योग (एमएसएमई) के लिए 6472 करोड़ का अनुमान रखा गया है।