उपभोक्ता सरंक्षण विधेयक 2018 का स्वागत करते हुये किया गलती की ओर ध्यान आकर्षित
देहरादून। उपभोक्ता के जिले में ही 1 करोड़ रूपये तक के उपभोक्ता मामले के निपटारे का प्रावधान करने वाला बिल लोक सभा के पिछले सत्र के अंतिम दिन प्रस्तुत किया गया है। इसके कानून बनने के दूरगामी परिणाम होंगे। इसके बिल का स्वागत करते हुये विधेयक के हिन्दी पाठ में हुई एक बड़ी गलती की ओर उपभोक्ता संरक्षण के लिये संघर्षरत नदीम उद्दीन (एडवोकेट) ने खाद्य मामलों के कैबिनेट मंत्री राम विलास पासवान को पत्र भेजकर उनका ध्यान आकर्षित कराया है।
माकाक्स के केन्द्रीय अध्यक्ष नदीम उद्दीन (एडवोकेट) ने उपभोक्ता हित में लोकसभा में उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2018 प्रस्तुत करने पर उनका आभार व्यक्त किया। साथ ही विधेयक के हिन्दी पाठ में एक बड़ी गलती की ओर ध्यान अकर्षित कराया है। श्री नदीम द्वारा केन्द्रीय खाद्य व उपभोक्ता मामलों के कैबिनेट मंत्री को भेजे पत्र में कहा गया है कि विधेयक की क्लाज 37(7) में उपभोक्ता मामले निपटाने की समय अवधि में तीन माह के स्थान पर तीन वर्ष लिख गया है। जबकि अंग्रेजी पाठ में तीन माह ही लिखा गया है। इससे उपभोक्ता हितों पर प्रतिकूूल प्रभाव पडे़गा। उन्होंने इस बिल को शीघ्र पास कराकर लागू करवाने तथा हिन्दी पाठ में इस गलती के सुधार का निवेदन किया है।
श्री नदीम ने बताया कि इस बिल के लागू होने पर जिले के उपभोक्ता फोरम, जिला उपभोक्ता आयोग बन जायेंगे तथा इन्हंें 20 लाख के स्थान पर एक करोड़ तक के उपभोक्ता मामले सुनने का अधिकार मिल जायेगा। प्रदेशों के उपभोक्ता राज्य आयोगों को एक करोड़ रूपये के स्थान पर दस करोड़ रूपये तक के मामले सुनने का अधिकार मिल जायेगा। राष्ट्रीय आयोग एक करोड़ से अधिक के स्थान पर दस करोड़ से अधिक के मामलों में सुनवाई करेगा। इससे बडे़ उपभोक्ताओं को भी जिले में ही न्याय मिल सकेगा। इसके अतिरिक्त उपभोक्ता वादों का ऑन लाइन भी फाइल किया जा सकेगा। उन्होंने बताया कि इस नये अधिनियम में एक महत्वपूर्ण प्रावधान है कि उपभोक्ता अपने निवास व कारोबार के जिले में ही उपभोक्ता परिवाद दायर कर सकता है। अभी तक विपक्षी के रहने या कारोबार के स्थान या मामले का कारण उत्पन्न होने के जिले में ही परिवाद दायर हो सकता है। इससे बाहरी व्यक्तियों के विरूद्ध भी जिले में ही वाद दायर किया जा सकेगा।
श्री नदीम ने कहा कि नये उपभोक्ता बिल में मध्यकता का प्रावधान भी किया गया है, दावा दायर होने के बाद मध्यकता के माध्यम से भी परिवाद का शीघ्र निपटारा किया जा सकेगा। लोकसभा में लम्बित उपभोक्ता संरक्षण विधेयक में कड़े दण्ड की भी व्यवस्था की गयी है जहां वर्तमान उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के समान उपभोक्ता आयोगों के आदेशों का पालन न करने पर तीन वर्ष तक की सजा का प्रावधान है, वही केन्द्रीय प्राधिकरण के उपभोक्ता अधिकारों का हनन व अनुचित व्यापारिक व्यवहार रोकने तथा गलत विज्ञापन रोकने व उसके खंडन प्रसारित करने के आदेशों का पालन न करने पर छः माह तक की सजा या बीस लाख रूपये तक का जुर्माना या दोनों की सजा का प्रावधान किया गया है। इसके अतिरिक्त झूठा या भ्रामक विज्ञापन करने पर दो वर्ष तक की सजा तथा दस लाख रूपये तक के जुर्माने की सजा हो सकती है। यही अपराध पुनः करने पर यह सजा पांच वर्ष तक की होगी तथा जुर्माना पचास लाख रूपये तक का होगा।
उन्होंने कहा कि नये बिल में मिलावटी माल बनाने, आयात करने व बेचने पर भी कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। यदि ऐसे मिलावटी सामान से किसी की मृत्यु होती है तो सात वर्ष तक की सजा से उम्र कैद तक की सजा हो सकेगी तथा जुर्माना भी होगा जो दस लाख से कम नहीं होगा। मिलावट के अन्य मामलों में भी छः माह से पांच वर्ष तक की सजा तथा तीन लाख से पांच लाख रूपये तक के जुर्माने की सजा हो सकेगी। नये बिल के अनुसार झूठे या भ्रामक विज्ञापन करने वाले तथा कराने वाले पर पहली बार में दस लाख रूपये तथा अगली बार में पचास लाख रूपये तक का जुर्माना भी केन्द्रीय उपभोक्ता प्राधिकरण द्वारा लगाया जा सकता है।