खेती एवं पलायन पर निरन्तर अनुसंधान की आवश्यकता: हरक सिंह

वनाग्नि रोकथाम के लिए आवश्यक उपाय करने पर दिया जोर
देहरादून। भारत वन सर्वेक्षण सभागार में भारतीय वन सर्वेक्षण पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से राज्यों के वन नोडल अधिकारियों हेतु वनाग्नि सीजन पूर्व दो दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गयी। कार्यशाला के प्रथम दिवस में प्रदेश के वन, आयुष, पर्यावरण संरक्षण मंत्री डाॅ हरक सिंह रावत के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न हुआ।
कार्यशाला में अपने विचार व्यक्त करते हुए वन मंत्री श्री हरक सिंह रावत ने नोडल अधिकारियों व वैज्ञानिकों को उत्तराखण्ड मैं जैवविविधता बनाये रखने के अलावा वनाग्नि रोकथाम के लिए भूमि पर अनुसंधान किये जाने की अपेक्षा की। उन्होंने कहा कि वनाग्नि के कारण वनस्पतियों, जीव जन्तु तथा जल संवर्धन पर विपरीत असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि वनाग्नि से मानव जीवन को कितना नुकसान होता है, इसके लिए कारगर उपाय किये जाने आवश्यक है। कार्यशाला में उपस्थित अधिकारियों से कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में जैवविविधता 28 प्रतिशत् है जो पूरे भारत में दो तिहाई है। आज की परिस्थिति को मध्यनजर रख उन्होंने कहा कि राज्य में 6000 वन कर्मियों के माध्यम से वनाग्नि की घटनाओं को रोकना सम्भव नही इसके लिए सामाजिक क्षेत्र से जुड़े लोगों का सहयोग लिया जाना आवश्यक है। उन्होंने उपस्थित अधिकारियों से इस दो दिवसीय कार्यशाला में वनाग्नि रोकने के उपायों पर विस्तार से चर्चा करने की आवश्यकता जताई। खेती एवं पलायन की समस्या पर उन्होंने कहा कि इसके लिए निरन्तर अनुसंधान की आवश्यकता है। पलायन के कारण खेत बंजर हो रहे हैं, खेती बचाने के लिए मिलकर सहयोग करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि वनाग्नि मुख्यरूप से मानव जनित है इसके लिए ग्राम वन पंचायत स्तर तक जनजागरूकता पैदा की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि खेती के बिना जंगलों की आग नही बूझेगी, इसके लिए जमीन पर शोध करने की आवश्यकता है। उन्होंने उपस्थित अधिकारियों से अपने-2 क्षेत्रों में वनाग्नि रोकथाम के लिए आवश्यक उपाय करने पर जोर दिया। कार्यक्रम में वनमंत्री द्वारा वर्जन-3 का बटन दबाकर उद्घाटन किया, जिसके माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों में लगी सूचनाओं की चेतावनी आसानी से जारी की जा सकेगी। उन्होंने कहा कि वनों के संरक्षण एवं सतत प्रबन्धन लक्षित सरकार की विभिन्न राष्ट्रीय नीतियों व कार्यक्रमों जैसे ग्रीन इण्डिया मिशन, राष्ट्रीय कृषि वानिकी नर्सरी, संयुक्त वन प्रबन्धन व राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रमों को बढावा दिया जाए।
वनाग्नि विषय पर आधारित कार्यशाला में पी.सी.सी.एफ के चेयरमैन उत्तराखण्ड जैवविविधता डाॅ राकेश शाह ने उपस्थित वनाधिकारियों से वनाग्नि को रोकने के लिए अपने सुझाव प्रस्तुत करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि ऊर्जा एवं वन विभाग आपसी समन्वय बनाकर धरातल पर कार्य करेंगे तो इससे वनाग्नि की घटनाओं पर अंकुश लग सकेगा। उन्होंने कहा कि भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग द्वारा वनाग्नि की संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान की जा रही है ताकि समय पर घटनाओं को रोकने में मदद मिल सके। कार्यक्रमकी जानकारी देते हुए महानिदेशक भारतीय वन सर्वेक्षण डाॅ सुभाष आशुतोष ने कार्यशाला में उपस्थित 16 राज्यों के वनाधिकारियों व वैज्ञानिकों से सीजन पूर्व वनाग्नि पर राज्य सरकारों से समन्वय स्थापित कर कारगर रणनीति बनाये जाने पर जोर दिया। उन्होंने सामाजिक सहभागिता, जागरूकता तथा जीओ तकनीक के माध्यम से वनाग्नि की दुर्घटनाओं पर काबू पाने की जानकारी दी। कार्यशाला में आई.जी डी.के सिन्हा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि लोगों की आर्थिकी  सुदृढ करने हेतु वन क्षेत्र में रोजगार की सम्भावनाएं तलाशी जायेगी ताकि लोगों द्वारा वनाग्नि के समय वन विभाग को आवश्यक सहयोग मिल सके। कार्यशाला में भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग द्वारा किये जा रहे कार्यकलापों की जानकारी संयुक्त निदेशक  श्रीमती मीनाक्षी जोशी द्वारा दी गई। कार्यशाला के अगले पड़ाव में भारतीय वन अनुसंधान संस्थान एफ.आर.आई में वनाग्नि की घटनाओं की रोकथाम हेतु विभिन्न प्रकार के उपकरणों की कार्यदक्षता के सम्बन्ध में अवगत कराया गया। कार्यशाला का संचालन उप निदेशक भारतीय वन सर्वेक्षण ई. विक्रम ने किया।
 इस दो दिवसीय कार्यशाला के प्रथम दिवस में संयुक्त निदेशक सुशांत शर्मा, वैज्ञानिक एन.आर.एस.सी डाॅ राजशेखर रेड्डी, तनय दास, डाॅ ए रामामूर्ति, डाॅ वी.एम डिमरी, डाॅ सुनील चन्द्रा, ए.के सक्सेना, विकास गुंसाई, अनुपम पाल, हर्षी जैन समेत वन अनुसंधान संस्थान एवं भारतीय वन संर्वेक्षण के अधिकारियों के साथ ही विभिन्न राज्यों से आये वनाधिकारियों ने प्रतिभाग किया कार्यशाला कल भी आयोजित की जायेगी।

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