जम्मू कश्मीर में चुपके से लागू हुआ अनुच्छेद 35 ए

वक्ताओं ने अनुच्छेद 370 एवं 35 ए पर रखे अपने विचार, स्थाई निवासी होने का प्रमाण देने का अधिकार केवल राज्य को
देहरादून (गढ़वाल का विकास न्यूज)। श्री गुरू राम राय विश्वविद्यालय एवं जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र उत्तराखण्ड के संयुक्त तत्वाधान में जम्मू कश्मीरः तथ्य, समस्या और समाधान विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें अध्ययन केंद्र के वक्ताओं ने धारा 370 एवं 35ए के विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हुए अपने विचार साझा किए।
मुख्य वक्ता के रूप में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं अनुच्छेद 370 एवं 35ए के विशेषज्ञ दिलीप दुबे ने कहा कि अनुच्छेद 370 संविधान सभा के द्वारा 17 अक्तूबर 1949 को अधिमिलन के दो वर्ष बाद लाया गया। अधिमिलन में 370 के विषय में कोई चर्चा नहीं है। यह संविधान सभा के द्वारा जम्मू कश्मीर में उस समय की समस्याओं के कारण लाया गया। गोपाल स्वामी आयंगार ने इस अनुच्छेद को प्रस्तुत करते समय सभा को बताया था कि जम्मू कश्मीर का आधे से अधिक भाग पाकिस्तान के कब्जे मे है। अभी अभी युद्ध विराम हुआ है। राज्य की जनता अभी सामान्य नहीं हो पाई है और यह मसला संयुक्त राष्ठ में लंबित है। जिसके कारण अभी राज्य में पूरा संविधान लागू नहीं किया जा सकता। इसलिए अंतरिम प्राविधान बनाकर राज्य में धीरे-धीरे परिस्थितियां सामान्य होने पर पूरे संविधान को लागू कर दिया जाएगा।
अनु. 35ए पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि यह अनुच्छेद 1954 में राष्ट्रपति के आदेश द्वारा लाया गया जिसे संसद में कभी नहीं रखा गया। इसकी संसद को जानकारी भी नहीं हुई। यह अनुच्छेद जम्नू कश्मीर के अंदर दो प्रकार के निवासियों की तो रचना करता है। एक वह जो राज्य के स्थाई निवासी हैं तथा दूसरा जो राज्य के निवासी तो हैं किंतु स्थाई निवास प्रमाण पत्र नहीं रखते। क्योंकि अनु. 35ए ने राज्य को यह शक्ति दी है कि वह राज्य के अंदर स्थाई निवास को परिभाषित कर सके। इसका नतीजा यह हुआ कि राज्य ने 1944 के बाद राज्य में प्रवेश किए किसी भी व्यक्ति को स्थाई निवासी नहीं माना। जिनमें पाकिस्तान से बंटवारे के समय आए व्यक्ति शामिल हैं। वह राज्य में रहते तो हैं किंतु स्थाई निवासी नहीं हैं। 1956 में पंजाब से बुलाए गए सफाई कर्मचारी भी स्थाई निवासी नहीं हैं एवं समय-समय पर महिलाओं उनके बच्चों को स्थाई निवासिता से राज्य के बाहर विवाह करने पर हाथ धोना पड़ता है। इस अनुच्छेद के होने से जो लोग राज्य में स्थाई निवास प्रमाण पत्र नहीं रखते वह न तो सरकारी नौकरी कर सकते हैं न ही सरकारी योजनाओं का लाभ ले सकते हैं। यहां तक कि अपना स्थाई निवास एवं तकनीकी शिक्षा भी नहीं ले सकते हैं। सोचने का विषय यह भी है कि पाकिस्तान से आए माननीय मनमोहन सिंह एवं इंद्र कमार गुजराल प्रधानमंत्री बन गए लालकृष्ण आडवानी गृहमंत्री हो गए किंतु जो राज्य में रुक गए उन्हें पंचायत में वोट डालने का अधिकार तक नहीं मिला। यह चिंता का विषय है।
जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र दिल्ली के अजय मित्तल ने जम्मू-कश्मीर के अतीत के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि ऐसा माहौल बनाया गया कि तत्कालीन कश्मीर भारत से दूर रहे। जम्मू-कश्मीर का सारा विकास कार्य केंद्र के खर्चे पर होता है। इस संबंध में लोगों को जानकारी कम है। जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा अस्थाई है। निधि बहुगुणा ने पीपीटी प्रेजेंटेशन के माध्यम से जम्मू कश्मीर के बारे में जानकारी दी। उन्होंने भू-राजनीतिक (जियोपालिटिकल) महत्व के बारे में बताया। क्षेत्रीय बौद्धिक प्रमुख सुशील कुमार ने कहा कि वक्ताओं द्वारा दी गई जानकारी के बाद इसे अमल में लाकर अपना योगदान देना होता है। हमारी व्यवस्था सत्ता केंद्रित नहीं रही बल्कि समाज केंद्रित रही। इसलिए समाज खड़ा हुआ और अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा। इसी तरह हमे संगठित समूह में खड़ा होना पड़ेगा। विवि के डिफेंस स्टडीज के विभागाध्यक्ष वैभव कुलाश्री ने भी अपने विचार रखे।
अध्ययन केंद्र के प्रांतीय संयोजक बलदेव पाराशर ने श्री महंत देवेंद्र दास जी माहाराज का धन्यवाद करते हुए कहा कि महाराज जी नैतिक शिक्षा के साथ-साथ राष्ट्रहित के आयोजनों को भी प्रोतसाहन दे रहे हैं इसके लिए हम उनका दिल से धन्यवाद करते हैं। इस मौके पर स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर के डीन इंचार्ज डॉ. ए.के. सक्सेना, इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष सुनील किस्टवाल, आदि मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन श्री गुरू राम राय विश्वविद्यालय के ओएसडी डॉ. दिनेश उपमन्यु ने किया।

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