बिना समर्पण के भक्ति असंभव : अजय

देहरादून। मन का भाव समर्पण करना होता है। मन की दशा खराब होने से दिशा खराब होती है। दिशा खराब होने से मनुष्य दु:ख पाता है। ये उद्गार निरंकारी सत्संग भवन, रैस्ट कैंप के तत्वावधान में आयोजित रविवारीय सत्संग कार्यक्रम में हरियाणा से पधारे अजय बेजोड़ ने प्रकट किए। उन्होंने कहा कि सद्गुरु शिष्य को झंझोड़ता है कि तेरी दिशा खराब है और उसे सही दिशा की ओर ले जाते हैं और कहते हैं कि तू अपनी दिशा को सही कर ले तो तुझे संसार के सारे सुख मिलेंगे। भक्ति नाम समर्पण है, अर्थात बिना समर्पण के भक्ति असंभव है। भक्ति से जीवन में निखार आ जाता है। भक्ति परमात्मा को जानकर करना ही श्रेष्ठ है। जिसकी समझ में परमात्मा का ज्ञान आ जाता है वह परमात्मा के साथ में अपना नाता जोड़ लेता है तो भक्त हमेशा भक्ति में तल्लीन हो जाते हैं। भक्त के जीवन में भक्ति, भक्त और भगवान के बीच की कड़ी है। भक्ति से प्रेम, दया, करुणा, नम्रता, सहनशीलता के गुण अपने आप भक्त के जीवन में प्रकट हो जाते हैं और वह परमात्मा को हाजिर-नाजिर देखकर संसार का भला मांगने लगता है। उन्होंने कहा कि सेवा, सेवा होती है चाहे ऊपर बैठने की हो, चाहे नीचे बैठने की हो। आदेश के अनुसार की गई सेवा सद्गुरु को परवान होती है। सद्गुरु संसार में सुन्दर जीवन जीने का तरीका सिखाता है। संसार में मुस्कराना बड़ा मुश्किल है लेकिन सद्गुरु के आशीर्वाद से गुरुसिख अपने आप तो मुस्कुराता ही है और दूसरों को मुस्कुराहट देने वाला बन जाता है। परमात्मा को जाने बगैर इंसान भ्रम भ्रांतियों में फंसा रहता है। जो सद्गुरु से परमात्मा के ज्ञान की जानकारी करता है। उसके जीवन में भक्ति के गुण प्रकट होते हैं। सत्संग समापन से पूर्व भक्तों ने विभिन्न भाषाओं में गीतों, भजनों और विचारों द्वारा सत्गुरु और परमात्मा का गुणगान किया। कार्यक्रम का संचालक विजय रावत ने किया।

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