देहरादून। सदगुरू की कृपा से ब्रह्ज्ञान रूपी दिव्य नेत्र से प्रभु की पहचान करके उसे पाया जा सकता है। जो ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करके व्यवहार में उपयोग करता है उसके वारे-न्यारे हो जाते हैं। यह विचार संत निरंकारी सत्संग भवन रेस्ट कैंप में आयोजित रविवासरीय सत्संग की अध्यक्षता करते हुए कानपुर से पधारी बहन डा. राज श्रीवास्तव ने सदगुरू माता सविन्दर हरवेज महाराज का संदेश देते हुए प्रकट किए। उन्होंने कहा कि यह निराकार है। इस निराकार को जानने एवं मिशन के पांच प्रणों पर चलकर व्यवहार में जो परिवर्तन आते है, तो हमारी दिशा और दशा बदल जाती है। मन की भ्रान्तियां समाप्त हो जाती है। जैसे कमल का फूल कीचड़ में उगता है, परन्तु वह कीचड़ में लिप्त नहीं होता। अगर पूरे तालाब में कमल के फूल खिले हो तो वह कीचड़ वाला तालाब भी सुन्दर लगता है। इसी प्रकार जब मन में निराकार का वास होता है, तो मन से द्वेष, निन्दा, नफरत, अंहकार व नकारात्मक भाव समाप्त हो जाते हैं। सब में परमात्मा को देखकर सहनीलता, नम्रता, समता का भाव उत्पन्न होता है। उन्होंने कहा कि संसार में रहकर संसार की भौतिक वस्तुओं से मोह न करके केवल इस निराकर परमात्मा से मन को जोड़ना ही भक्ति है। कार्यक्रम का संचालन अशोक भारती ने किया। उधर, संत निरंकारी सत्संग भवन बालावाला में सदगुरू माता सविन्दर हरदेव महाराज का संदेश देते हुए रेस्ट कैंप ब्रांच से पहुंचे विनोद ने कहा कि आत्म को संवारने के लिए ज्ञान का उजाला प्राप्त करना चाहिए। सद्गुरु की कृपा से आत्मा और मन के भ्रम दूर होते हैं। बंधनों से निजात मिल जाती है और हम वास्तविकता स्में स्थित हो जाते हैं।