नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरियों में दस फीसद क्षैतिज आरक्षण देने को संविधान सम्मत नहीं ठहराया है।उल्लेखनीय है कि इस मामले में पूर्व में खंडपीठ के दो न्यायाधीशों की राय परस्पर विपरीत आई थीं। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण न देने संबंधित आदेश दिये थे, जबकि न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी ने राज्य आंदोलनकारियों के पक्ष में निर्णय दिया था। इस पर मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएम जोसफ ने मामले को न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की तीसरी बेंच को सुनने के लिए सौंपा। बुधवार को एकलपीठ ने मामले में अपना फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति धूलिया के आदेश को सही ठहराया और राज्य आंदोलनकारियों को दस फीसद आरक्षण देने से संबंधित सरकार के शासनादेश को गलत व संविधान की धारा 16 (4) की भावना के खिलाफ माना तथा उच्च न्यायालय की संस्तुति पर ही ‘‘इन द मेटर ऑफ अपाइंटमेंट एक्टिविस्ट’ द्वारा दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया। इस प्रकार उत्तराखंड सरकार के इस संबंध में जारी 11 अगस्त 2004 के शासनादेश व 2010 की नियमावली भी असंवैधानिक घोषित हो गयी है।
सीएम का टिप्पणी से इनकार
देहरादून। राज्य आंदोलनकारियों के क्षैतिज आरक्षण को असंवैधानिक बताने संबंधी फैसले पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने फिलहाल टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। वहीं मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह का कहना है कि हाईकोर्ट ने क्या फैसला लिया है उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। जब हाईकोर्ट के आदेश की आधिकारिक जानकारी मिलेगी, तब उसके अध्ययन के बाद उसका अनुपालन किया जाएगा।