आपके बच्चे में तो नहीं हैं आटिज्म के लक्षण

हर 80वें बच्चे में आटिज्म के लक्षण, श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में कार्यशाला का आयोजन
देहरादून (गढ़वाल का विकास न्यूज)। आटिज्म बच्चे के विकास व व्यवहार में आने वाले परिवर्तन से सम्बन्धित रोग है। ऐसे बच्चे खुद में गुमसुम रहते हैं, लोगों से बोलते नहीं हैं व हाइपर एक्टिव होते हैं। ऐसे बच्चे अपनी बातों व भावनाओं को ठीक तरह से व्यक्त नहीं कर पाते हैं। आटिज्म पैदाइशी होता है, बच्चे के जन्म के 6 माह से 1 वर्ष के भीतर ही इस बीमारी का पता लग जाता है कि बच्चा सामान्य व्यवहार कर रहा है या नहीं।
आटिज्म एक मानसिक बीमारी है, जिसके लक्ष्ण बचपन से ही नज़र आने लगते हैं। आटिज्म से ग्रसित बच्चों को माता-पिता के प्यार, देखरेख के साथ ही विशेष थैरेपी की भी आवश्यता होती है। आटिज्म से ग्रसित बच्चों को समझने के लिए कुछ खास बातों को ध्यान रखना जरूरी है। यह बात श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में विशेषज्ञों ने आटिज्म से ग्रसित बच्चों व उनके अभिभावकों के साथ रूबरू होते हुए कही। रविवार को श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के आडिटोरियम में स्किल डेवलपमेंट एण्ड बिहेवियर रिडक्शन इन चिल्ड्रन विद आटिज्म (ए0बी0ए0 प्रिंसिपल्स) विषय पर आयोजित कार्यशाला का शुभारंभ अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त डाॅ स्मिता अवस्थी व श्री महंत अस्पताल की वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डाॅ श्रुति कुमार ने संयुक्त रूप से किया।


इस कार्यशाला व जागरूकता कार्यक्रम के संयोजन में जिला दिव्यांग पुर्नवास केन्द्र, देहरादून, उत्तराखण्ड सरकार की सहभागिता रही। डाॅ स्मिता अवस्थी ए0बी0ए0 (एप्लाइड बिहेवियर एनेलसिस) की विशेषज्ञ ट्रेनर हैं वह देश-विदेश में ए0बी0ए0 पर कार्यशालाएं करती हैं। ए0बी0ए0 एक साइंटिफिक थैरपी है जिसका इस्तेमाल आटिज्म से ग्रसित बच्चों के उपचार में किया जाता है। डाॅ स्मिता अवस्थी ने समझाया कि एबीए क्या है व इसको इस्तेमाल करके माता-पिता अपने बच्चों के विकास व व्यवहार में कैसे सुधार कर सकते हैं। कार्यशाला में अभिभावकों को एबीए तकनीक का डैमो दिखाकर उन्हें ट्रेनिंग भी दी गई।
श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल की वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ (डेवलेपमेंटल पीडियाट्रिशन) डाॅ श्रुति कुमार ने कहा कि आटिज्म एक न्यूरो डेवलपमेंटल डिस्आर्डर है। यह बच्चों के मानसिक विकास के अवरोध से सम्बन्धित विकार है। इस विकार का कोई एक स्थाई कारण नहीं है। इसका मूल कारण अनुवांशिक होता है, लेकिन अनुवांशिक कारण का अर्थ यह नहीं कि माता-पिता में आटिज्म के लक्षण हों और ऐसे लक्षण बच्चों में परिर्वतित हो जाएं। बच्चे के जीन में कोई परिवर्तन हो सकता है या माता पिता में कोई जीन सुप्त हो वह बच्चे में आकर एक्टिव हो सकता है।
डाॅ श्रुति कुमार ने जानकारी दी कि श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के शिशु रोग विभाग में 2 वर्षों से चाइल्ड डेवलपमेंट यूनिट काम कर रहा है। उन्होंने जानकारी दी कि हर साल 500 से 600 विभिन्न डेवलेपमेंटल डिसओर्डर के नए केस अस्पताल में उपचार के लिए आ रहे हैं। इन बच्चों का थैरेपी व काउंसलिंग के माध्यम से उपचार किया जा रहा है। इनमें से 100 से 150 बच्चों में आटिज्म पाया गया है। आकडे इस बात की भी तस्दीक करते हैं कि हर 80वें बच्चे में आटिज्म की शिकायत है। डाॅ श्रुति ने जानकारी दी कि श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में बिहेवियर थेरेपी, स्पीच थेरेपी व आक्यूपेशनल थेरेपी विद सैन्सरी इंटीगरेशन के द्वारा इन बच्चों का उपचार किया जा रहा है।


इस थेरेपी से बच्चों का फोकस व एकाग्रता बढ़ती है, उसे शान्त किया जाता है व उसके सम्पूर्ण विकास पर काम किया जाता है। कुछ बच्चों को दवाई की जरूरत भी पड़ती है। इस कार्यशाला को सफल बनाने में अस्पताल के चेयरमैन श्री महंत देवेन्द्र दास जी महाराज प्रेरणा स्त्रोत रहे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *