देहरादून। हाल में पेश केंद्रीय आम बजट की आलोचना करते हुए उसे महज भाषण बताते हुए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि सरकार को साफ करना चाहिए कि उसने इस साल का बजट पेश किया है या दो तीन साल का एक साथ।
हरीश रावत ने कहा कि बजट भाषण में वित्त मंत्री विभिन्न योजनाओं को लेकर कुछ कहते हैं, मगर जब आवंटन पर निगाह डाली जाए तो कुछ और ही तस्वीर नजर आती है। मिसाल के तौर पर जिस स्वास्य बीमा योजना को दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्य बीमा योजना बताया जा रहा है, उसके तहत 42-42 करोड़ लोगों के पांच लाख रुपये तक के बीमा के लिए ढाई लाख करोड़ की जरूरत होगी लेकिन आवंटन महज सवा लाख करोड़ किया गया है। शिक्षा का बजट भी कम कर दिया गया है और हैरत की बात है कि स्वास्य के बजट पर भी कटौती की मार पड़ी है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने तमाम योजनाओं के पूरा होने की अवधि भी कई-कई साल आगे की तय की है। अब सवाल यह है कि बजट इस साल का था कि अगले कई सालों का। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने हुए चार साल बीत चुके हैं। अब उनकी सरकार पांचवें साल में प्रवेश कर रही है और अब जाकर उन्हें किसान, मजदूर, बेरोजगार याद आ रहे हैं। चार साल उन्हें न मजदूर याद आए, न नौजवानों की नौकरियां याद आई, न लोगों का स्वास्य याद आया और किसान तो खैर कभी भाजपा के एजेंडे का हिस्सा ही नहीं रहे, जब चुनाव नजदीक आया तो अब ये सब याद आने लग गए हैं। केंद्र सरकार किसानों को फसल की लागत का डेढ़ गुना देने का दावा कर रही है लेकिन उनका मानना है कि यह तब तक संभव नहीं जब तक न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कोई कानूनी प्राविधान नहीं किया जाता।