देहरादून। वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) में जल संरक्षण, प्रबंधन, विकास व स्वच्छता पर कार्यशाला आयोजित की गई। संस्थान के मृदा एवं भूमि सुधार प्रभाग द्वारा आयोजित कार्यशाला में शिरकत कर रहे विषय विशेषज्ञों ने जल प्रबंधन से जुड़े विभिन्न बिंदुओं पर र्चचा की। वक्ताओं ने जल का उचित तरीके से इस्तेमाल, प्रबंधन व संसाधनों पर जोर दिया। कहा कि आमजन को इस बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। एफआरआई की निदेशक डा. सविता ने कार्यशाला का उद्घाटन किया।उन्होंने कहा कि पृवी के 71 प्रतिशत भूभाग पर जल है। जीवन को बचाये रखने के लिए जल जरूरी है लेकिन चिंता की बात यह कि उपलब्ध जल में शुद्ध जल के स्रेत बहुत कम हैं। शुद्ध जल भी 70 प्रतिशत ग्लेशियरों में समाहित है। लेकिन प्रकृति में मौजूदा दौर में जिस तरह के परिवर्तन हो रहे हैं वह भी शुद्ध जल के स्रेतों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। ऐसे में जल संरक्षण व प्रबंधन की दिशा में ठोस कदम उठाये जाने की जरूरत है। उन्होंने विश्व स्वास्य संगठन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि मनुष्य में होने वाली अधिकांश बीमारियों का कारण दूषित जल का सेवन करना ही है। एशियाई विकास बैंक ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2030 तक भारत में जल की कमी पचास प्रतिशत हो जायेगी। ऐसे में भविष्य में आने वाली इस तरह की चुनौतियों से पार पाने के लिए अभी से ही योजना तैयार की जानी चाहिए। जल प्रधान क्षेत्रों व नदी बाहुल्य इलाकों में वन उत्पादकता बढ़ाये जाने पर भी वक्ताओं ने जोर दिया है। वष्ागत व भूमिगत जल का संरक्षण व प्रबंधन पर भी जोर दिया गया। डा. वीपी पंवार, डा. पारूल भट्ट, डा. वीपी डिमरी आदि भी इस अवसर पर उपस्थित रहे।