नहीं रहे पूर्व सांसद व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिपूर्णानंद पैन्यूली

देहरादून (गढ़वाल का विकास न्यूज)। आजादी के आंदोलन और टिहरी रियासत को आजाद भारत में विलय कराने में अहम भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पूर्व सांसद परिपूर्णानंद पैन्यूली का शनिवार को निधन हो गया। रविवार को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, टिहरी गढ़वाल के पूर्व सांसद और समाजसेवी परिपूर्णानंद पैन्यूली का निधन हो गया है। 96 वर्षीय परिपूर्णानंद पैन्यूली लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। शनिवार सुबह तबीयत बिगड़ने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। रविवार को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। परिपूर्णानंद पैन्यूली का जन्म 19 नवंबर 1924 में टिहरी शहर के निकट छौल गांव में हुआ था। उनके दादा राघवानन्द पैन्यूली टिहरी रियासत के दीवान और पिता कृष्णानंद पैन्यूली इंजीनियर थे। उनकी माता एकादशी देवी के साथ ही पूरा परिवार समाजसेवा और स्वाधीनता आंदोलन के लिए समर्पित रहा।
परिपूर्णानंद पैन्यूली जीवट, जुझारू और स्वच्छ छवि के एक स्पष्ट व्यक्ति थे। आजादी के आंदोलन और टिहरी रियासत को आजाद भारत में विलय कराने में न केवल स्व. पैन्यूली ने अहम भूमिका निभाई, अपितु ब्रिटिश सरकार के खिलाफ शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन में भी वह शामिल रहे। विलीनीकरण के एतिहासिक दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने वाले तीन प्रमुख प्रतिनिधियों में वह भी एक थे। वह हमेशा भ्रष्टाचार के खिलाफ रहे। वे टिहरी के पूर्व नरेश मानवेंद्र शाह को हराकर 1971 में सांसद बने थे।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पूर्व सांसद परिपूर्णानंद का निधन, संघर्षों से भरा था उनका सफर
क्रांतिकारी और बागावती तेवरों के चलते परिपूर्णानंद पैन्यूली राजद्रोह के आरोप में छह साल तक मेरठ और लखनऊ जेल में बंद रहे। अपने संसदीय कार्यकाल में परिपूर्णानंद पैन्यूली ने पर्वतीय क्षेत्र के पिछड़ेपन और अनुसूचित जाति-जनजाति की समस्याओं को लेकर पुरजोर ढंग से आवाज उठाई। परिपूर्णानंद पैन्यूली कलम के भी धनी रहे। उन्होंने एक दर्जन से ऊपर पुस्तकें लिखी हैं। निर्धन बच्चों की शिक्षा और वंचितों के विकास के लिए वह अंतिम सांस तक सक्रिय रहे।
उनके संघर्ष पर एक नजर 
– 1942 में 18 वर्ष की आयु में भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़े।
– पांच साल के लिए मेरठ जेल में भेजे गए, वहां पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह, राजस्थान के राज्यपाल रहे रघुकुल तिलक जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के बीच रहे।
– 1947 में टिहरी राजशाही के खिलाफ बिगुल फूंका, जिसके बाद उन्हें टिहरी जेल भेजा गया।
-जनवरी 1948 में टिहरी जेल से फरार हो गए, दस दिन तक पैदल चलकर चकराता पहुंचे।
-टिहरी रियासत को इंडियन यूनियन में शामिल कराने में रहे सफल।
-हिमाचल प्रदेश के रूप में 34 पहाड़ी रियासतों को एक करने में निभाई अहम भूमिका।
उपलब्धियां और सम्मान
– परिपूर्णानंद पैन्युली 1971 में टिहरी नरेश मानवेंद्र शाह को हराकर लोकसभा सदस्य चुने गए।
– 1972-74 में यूपी-हिल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन के पहले चेयरमैन रहे।
-लोक लेखा समिति, संयुक्त संसदीय समिति समेत कई संसदीय समितियों में कार्य किया।
– 35 वर्ष तक पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय रहे। उनके तीन सौ से ज्यादा आलेख राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए।
-विद्यार्थी परिषद, देशी राज्य और जनांदोलन, संसद व संसदीय प्रक्रिया समेत दो दर्जन से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित। तीन के लिए मिला सम्मान।
-राज्य के पहले दैनिक सांध्य पत्र का प्रकाशन और संपादन किया।
-भारतीय दलित साहित्य अकादमी ने 1996 में डॉ. भीमराव अंबेडकर अवॉर्ड से नवाजा।
-सामाजिक क्षेत्र में निरंतर सेवारत, अब्बास तैय्यबजी ट्रस्ट के संस्थापक सचिव रहे।
-निर्धन बच्चों को शिक्षा और वंचितों के विकास के लिए रहे कार्यरत।

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