देहरादून (गढ़वाल का विकास न्यूज)। भक्ति का आरम्भ ही तब होता है जब प्रभु को पाकर इसके साथ नाता जोड़ लिया जाता है। अगर गुरूसिक्ख केे जीवन में कोई आया ही नहीं, तो गुरूसिक्ख प्यार किससे करेंगे, भक्ति कैसे करेंगे इसलिए जीवन में कोई भी कार्य करने के लिए सद्गुरू के प्रति समर्पण जरूरी होता है। इस आश्य के विचार सन्त निरंकारी मण्डल के तत्वावधान में आयोजित रविवारीय सत्संग में रैस्ट कैम्प स्थित निरंकारी भवन में दिल्ली निरंकारी मंडल से पधारे महात्मा बृजमोहन सेठी ने व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि हम जीवन के किसी भी क्षेत्र में हों जैसे कार्यस्थल पर हों, खेल गतिविधियों में हों, या अन्य किसी कार्य में समर्पण के बिना किसी भी कार्य में पूर्णता नहीं किया जा सकता है। उन्होंने आगे फरमाया कि गुरूसिक्ख जब सद्गुरू पर समर्पित हो जाता है तो गुरूसिक्ख कुछ माॅंगता नही, वह सद्गुरू के वचनो को मानकर, वचनो को कर्मो में ढालता है। सत्संग में जाकर सेवा, सिमरण करके ब्रह्ममयता का अहसास करता है। सत्संग दुर्लभ है, ब्रह्मज्ञान दुर्लभ है, सिमरण दुर्लभ है लेकिन बिना समर्पण के सभी चीज दुर्लभ हैं। आज मनुष्य विश्व में जो तरक्की, विकास, प्रगति कर रहा है वह सभी समर्पण से ही संभव हो रही है।
बृजमोहन सेठी ने अपने आध्यात्मिक प्रवचन प्रकट करते हुए कहा कि सेवा का महत्व सेवादार भक्त ही समझता है। वही जानता है कि भक्ति क्या है। भक्त एक खिला हुआ फूल होता है और भक्ति उसकी महक हुआ करती है। भक्त हमेशा समर्पण भाव से जीवन व्यतीत करता है, इस ईश्वर निराकार प्रभु परमात्मा के आगे सर्वस्व अर्पण कर देता है, तन-मन-धन से सेवा में संलग्न रहता है। सेवा वही कर सकता है, जो नम्रता में हो, दास भावना में जीवन जी रहा हो। अहंकारी कभी सेवा नहीं करता। सेवक तो स्वयं को सेवा का भी कर्ता नही मानता। वह सेवा को प्रभु-कृपा ही मानता है। हमारे शरीर के ऊपर लगा हुआ चेहरा, हमारे शीश ही हमारे शरीर की पहचान बनता है। भक्त की यही भावना होती है कि अपने अंहकार रूपी शीश को अर्पित कर देता है, इसको अपने पास नहीं रखता।
उन्होंने कहा कि आज यही संदेश सद्गुरू माता सुदीक्षा-सविन्द्र-हरदेव सिंह जी महाराज समाज के प्रत्येक प्राणीमात्र को दे रहे हैं जिससे अमृतमयी ज्ञान गंगा की धारा सभी के दिलों में बहे ओर इस ब्रह्मज्ञान रूपी ईश्वर निराकार प्रभु परमात्मा को प्राप्त करके अपना जीवन भक्तिमय ओर आन्नदित कर सकें ताकि लोक व परलोक अच्छा हो जायें। प्रवचनों से पूर्व कई सन्तों-भक्तों, वक्ताओं, गीतकारों ने अपने उद्गार हिन्दी, पंजाब, गढ़वाली, कुमाउंनी में प्रकट किये। मंच संचालन रवि आहूजा ने किया।