देहरादून। वन मृदा एवं भूमि सुधार प्रभाग, वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून में ’’मृदा विज्ञान में शोध आवश्यकताएं एवं नेटवर्किंग अवसर’’ विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि के रूप मंे इस सेमीनार का उद्घाटन डा0 आरती चौधरी, भा0व0से0 द्वारा किया गया। इस सेमीनार का मुख्य उद्देश्य विचार विमर्श हेतु मृदा विज्ञान से संबंधित शोधकर्ताओं को परिषद्/बोर्ड में लाना है तथा इस महत्वपूर्ण शोध क्षेत्र में भावी युक्तियां तलाशने हेतु मंथन करना है।
डा0 वी0पी0 पंवार, प्रमुख वन मृदा एवं भूमि सुधार प्रभाग के स्वागत भाषण के साथ ही सेमीनार शुरू हुई। तत्पश्चात निदेशक, वन अनुसंधान संस्थान ने सेमीनार को संबोधित किया। उन्होने कहा कि हम भारतीय मानते हैं कि मानव मिट्टी में ही पैदा हुआ और उसका अंत भी मिट्टी में ही होगा। ’पृथ्वी सूक्त’ में वैदिक सिद्ध पुरूष पृथ्वी मां के लिए मनुष्य हेतु निष्ठावान सहनशील/चिरस्थाई पुत्र की सत्यनिष्ठापूर्वक घोषणा करते हैं। ’’माता भूमिः पुत्रोह्म पृथिव्याः’’ का अर्थ है ’ भूमि/पृथ्वी मेंरी मां है और मैं उसका पुत्र हूं। पृथ्वी भी कहती है। विश्वगर्भाः (समस्त विश्व का गर्भ/कोख)। मानव समाज के लिए मिट्टी प्रकृति का सबसे अद्भुत उपहार है। वास्तव में 4.5 बिलियन वर्ष प्राचीन पृथ्वी मिट्टी की जननी है। शायद यह मिट्टी के लिए सबसे प्राचीन समय से सम्मान/श्रद्वा स्थापित करता है और यह मिट्टी एवं मानव समाज के लिए सबसे करीबी नजदीकी संबंध है। उन्होने कहा कि कुप्रबंधन एवं भूमि उपयोग में परिवर्तन के कारण मृदा निम्नीकरण प्रक्रिया की अंश बढत एवं विस्तार हमारी भूमि को संकट में डाल रहे हैं। यदि हमें भावी पीढी हेतु अन्न उत्पादन सुनिश्चित करना, जलवायु परिवर्तन न्यूनीकरण, शुद्ध भू-जल एवं जैवविविधता हानि में कमी लाना चाहते हैं तो हमंे इस विचारधारा को उलटने की क्रिया की तत्काल आवश्यकता होगी। 98 प्रतिशत भोजन हमें मृदा से प्राप्त होता है एवं समुद्र से 2 प्रतिशत प्राप्त होता हैं। 815 मिलियन लोगों का खाद्य असुरक्षित हैं। 2 प्रतिशत लोग पोषणीय रूप से असुरक्षित हैं लेकिन हम इसका न्यूनिकरण मृदा के जरिए कर सकते हैं। जिस भोजन को हम खाते हैं उसकी पौष्टिकता उस मिट्टी के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है जिसमें वह अन्न उपजता है। अतः कृषि मृदा का प्रबंधन अधिक पोषणीय भोजन उत्पादन हेतु मृदा की (एन.पी.के. नहीं) बनावट, जैवीय ख्निज पोषकता पर निर्भर होना चाहिए।ऑर्गनिक कार्बन युक्त उच्चकोटि की मृदा बेहतर वर्षा छानक एवं धारण करने में सक्षम होती है। इससे सूखे से निपटा जा सकता है। मृर्दा आनिक कार्बन का प्रत्येक ग्राम 8 ग्राम जल को धारण कर सकता है। मृदा के न्यूनिकरण से कार्बन घटत होती है, लेकिन वानस्पतिक भू प्रबंधन कार्य मृदा को बनाता है एवं मृदा स्वास्थय को पुर्नभण्डारित करता है। पारंपरिक कृषि कार्यों के अंतर्गत मृदा अपरदन प्राकृतिक मृदा निर्माण दर की तुुलना में 100 गुना अधिक दर की हो सकती है। विश्व की कार्बन डाई आक्साइड उत्सर्जक का 10 प्रतिशत मृदा भण्डारण होता है। मृदा वातावरण से कार्बन को तीन गुना धारण करती है और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने में हमारी सहायता करती है। इस शोध सेमीनार में डा0 एम.एन.झा, पूव्र प्रमुख वन मृदा भूमि सुधार प्रभाग ने वानिकी में मृदा विज्ञान के इतिहास पर एक व्याख्यान दिया। मृदा विज्ञान में आधुनिक शोध विचारधारा एवं नेटवर्किंग पर डा0 डी0वी0 सिंह, प्रधान वैज्ञानिक, मृदा, आइ.आइ.एस.डब्लू.सी, देहरादून ने भी व्याख्यान दिए। उसके बाद डा0 पी0पी0 पंवार ने मृदा स्वास्थ्य एवं वानिकी में मृदा हेल्प कार्ड पर विचार विमर्श पर व्याख्यान दिए। उसके उपरांत डा0 सुरेश कुमार, प्रमुख, कृषि एवं मृदा विभाग, आइ.आइ.आर.एस ने दूर-संवेदी के अनुप्रयोग एवं मृदा विज्ञान में जी.आई.एस पर व्याख्यान दिए। तत्पश्चात प्रमुख एवं वैज्ञानिकों द्वारा वन मृदा एवं भूमि सुधार प्रभाग की वर्तमान कार्यकलापांे को प्रस्तुत किया गया। इससे पूर्व प्रभाग प्रमुखों शोध संगठनों के पूर्व प्रतिनिधियों एवं अन्य प्रतिभागियों/अतिथियों ने अपने-अपने अनुभव साझा किए। शोध कर्मियों को सामने लाने एवं सेमीनार की संस्तुतियों एवं धन्यवाद प्रस्ताव के साथ विचार विमर्श का समापन किया गया। डा0 पारूल भट्ट कोटियाल, वैज्ञानिक-डी, व.मृ.भू.सु. प्रभाग ने धन्यवाद प्रस्ताव दिया। इस सेमीनार में वन अनुसंधान संस्थान के सेवानिवृत वैज्ञानिक, समूह समन्वयक, चीफ लाईब्रेरियन, एफ.आर.आई. (सम) विश्वविद्यालय के डीन एवं रजिस्ट्रार, कुलसचिव, व0अ0सं0, प्रचार एवं जनसम्पर्क अधिकारी तथा अन्य शोध संगठनों जैसे आई.आई.एस.डब्लू.सी, एफ.एस.आई, आई.आई.आर.एस. आदि उपस्थित थे। वन अनुसंधान संस्थान के सभी प्रभाग प्रमुख, वन मृदा भूमि सुधार प्रभाग के सभी वैज्ञानिक तकनीकी स्टाफ व वन अनुसंधान संस्थान(सम) विश्वविद्यालय के शोधार्थी भी उपस्थित थे।