देहरादून। संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने योग शिक्षकों के लिए संस्कृत को अनिवार्य करने का फैसला लिया है। उधर कांग्रेस ने योग शिक्षकों और प्रशिक्षकों की नियुक्ति में संस्कृत की अनिवार्यता का विरोध किया है।
शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने पत्रकार वार्ता में कहा कि संस्कृत के बारे में यह धारणा है कि इसका उपयोग सिर्फ कर्मकांडी ब्राह्मणों के लिए होता है। राज्य सरकार पहले से ही संस्कृत को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दे चुकी है। इसलिए संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए हरसंभव कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि आज भारत का योग पूरी दुनिया में प्रचारित हो गया है, जिसकी वजह से विश्व योग दिवस का भी आयोजन होने लगा है। ऐसे में दुनियाभर में योग शिक्षकों की भारी मांग बढ़ रही है। सरकार चाहती है कि योग प्रशिक्षकों के जरिये संस्कृत को फिर से वही पुराना गौरव मिल सके।
उन्होंने बताया कि योग प्रशिक्षकों के लिए संस्कृत अनिवार्य करने से हमारी इस पौराणिक भाषा का विश्वभर में प्रचार हो जाएगा। सरकारी स्कूलों में नियुक्त होने वाले योग शिक्षकों के लिए संस्कृत अनिवार्य करने से भी संस्कृत भाषा को मजबूती मिलेगी। इससे लोगों की यह धारणा भी टूटेगी कि संस्कृत पढ़ने के बाद कैरियर में समस्या है। उन्होंने बताया कि तत्काल होने वाली नियुक्तियों में सरकार का यह आदेश लागू नहीं होगा, लेकिन संस्कृत विद्यालयों से निकलने वाले छात्रों को उच्च शिक्षा में संस्कृत पढ़ने का मौका देने का बाद अगले दो साल में यह फैसला पूरी तरह लागू हो जाएगा।
योग प्रशिक्षक व शिक्षक के रूप में कैरियर बनाने के इच्छुक लोगों को संस्कृत पढ़नी पढ़ेगी। उन्होंने बताया कि संस्कृत में शास्त्री व आचार्य की डिग्रियों को योग शिक्षक के लिए अनिवार्य किया जाएगा। पत्रकार वार्ता में निदेशक संस्कृत शिक्षा आरके कुंवर व संस्कृत अकादमी के सचिव भी मौजूद थे।
उधर कांग्रेस ने योग शिक्षकों और प्रशिक्षकों की नियुक्ति में संस्कृत की अनिवार्यता का कड़ा विरोध किया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह का कहना है कि सरकार का यह फैसला न्यायोचित नहीं है। उनका कहना है कि योग शिक्षकों के लिए संस्कृत की बैरिकैटिंग लगाना योग प्रशिक्षितों के साथ धोखा है। सरकार ने बेरोजगारों का भविष्य सरकार ने संकट में डाल दिया है।