देहरादून (गढ़वाल का विकास न्यूज)। राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी मंजू बहन ने कहा कि मनुष्यात्माओं में परिपूर्णता नहीं होती, पर अपनी वास्तविकता को स्वीकार करना चाहिये, तभी अपनी कमियों को दूर कर सकेंगे।
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के स्थानीय सेवाकेन्द्र सुभाष नगर देहरादून के सभागार में सत्संग में उपस्थित सभाजनों को राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी मंजू बहन जी ने एक कहानी के माध्यम से समझाया कि बाहर-भीतर की सच्चाई सम्मान दिलाती है। ऊपरी दिखावे से कुछ समय के सम्मान की खुशफ़हमी तो हो सकती है, किंतु वह सम्मान स्थायी नहीं होता।
उन्होंने सुनाया कि एक संगीत प्रेमी परिवार था। उस घर में अनेक वाद्य यंत्र एक कमरे में करीने से रखे हुये थे। एक दिन एक नन्हा बालक खेलते-खेलते उस कमरे में जा पहुँचा। वहाँ सितार, मृदंग और तबला एक कपड़े से ढके हुये एक चैकी पर रखे हुये थे। लेकिन एक बाँसुरी ज़मीन पर पड़ी हुई थी। उस बालक ने कपड़ा हटाकर सभी साजों को देखा। फिर सितार के एक तार को जा़ेर से खींचा। उसमें से एक तान निकली। तबले पर एक घूँसा दिया। थाप की आवाज़ आई। मृदंग पर लात मारी। ताल उभरी। फिर ज़मीन पर पड़ी बाँसुरी को उठाकर उसमें एक फ़ूँक दी। एक ध्वनि सुनाई दी। फिर वह बच्चा वहाँ से चला गया।
तब अभिमान से सितार, मृदंग और तबले ने आपस में आश्चर्य व्यक्त किया कि सम्मानित साजों को तो दुव्र्यवहार मिला। सितार के कान खिंचे, तबले को घूँसा मिला और मृदंग को लात पड़ी। पर नीचे गिरी बाँसुरी को उस बालक ने क्यों चूमा ? बाँसुरी ने उत्तर दिया कि वे सारे ही वाद्य अंदर से तो खोखले थे पर बाहर से बंद, सजे, ढके थे, तो उनकी असलियत मालूम ही नहीं पड़ती थी। परंतु बाँसुरी अंदर-बाहर खाली थी तो दिखती भी थी।
बहनजी ने कहा कि मनुष्यात्माओं में परिपूर्णता नहीं होती, पर अपनी वास्तविकता को स्वीकार करना चाहिये, तभी अपनी कमियों को दूर कर सकेंगे। उन कमियों को ज़्यादा देर तक ढक कर नहीं रख पायेंगे। वे सामने ज़रूर आयेंगी। स्वीकार और परिवर्तन करने की शक्ति आत्म-भान और परमात्म ज्ञान व यथार्थ याद से आती है। राजयोग से स्वराज्य आता है जो स्थायी सम्मान दिलायेगा।
इस अवसर पर विजयलक्ष्मी, उमा रावत, कविता गुरुंग, जयपाल, यशोदा, सीता, रघुवीर आदि मौजूद थे।