देहरादून। संसार में समस्त पाप सुख के लिए किए जाते हैं न कि दुख के लिए। सब विकार सुख की इच्छा से ही पनपते हैं। पाप का फल तो सदा दुख ही होता है तो दुख से बचने के लिए पाप का परित्याग आवश्यक है। यह कहना है राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी मन्जू बहन का।
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के स्थानीय सेवाकेन्द्र सुभाष नगर देहरादून के सभागार में आयोजित, रविवारीय सत्संग में राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी मन्जू बहन ने “कर्मों की गुह्यता” पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि कर्मगति के अनुसार मनुष्य, पशु या जन्तु नहीं बनता बल्कि अपने संस्कार वैसे बना लेता है। मनुष्य के विकारी संस्कार को निकाल कर उस के मन में पवित्रता स्थापित करने का कार्य ईश्वरीय ज्ञान द्वारा होता है। दिल में परमात्मा शिव की याद बसाने से ही मनुष्य का मनोपरिवर्तन अथवा हृदय परिवर्तन होता है। उन्होंने कहा कि यदि मानव जीवन में दुर्गुण रूपी छिद्र होगा तो वह संसार रूपी सागर में डूबने वाला ही है। काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार आदि सब अवगुण रूपी छिद्र हैं। दुर्गुण कोई भी हो, जीवन बर्बाद करने के लिए काफी है।
राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी मन्जू बहन ंने कहा कि राक्षस के दो चित्र दिखाये जाते हैं उसमें राक्षस के सींग, लम्बे-लम्बे दाँत, लम्बे-लम्बे नाखून व भयंकर रूप दिखाया जाता है। क्या कभी ऐसे राक्षस थे? अगर ऐसे होते तो जरूर आज भी उनका अंश होता। राक्षस व देवता, प्रवृत्ति का नाम है। सींग का मतलब है आक्रमक होना, बिना कारण किसी पर हमला कर नुक्सान पहुँचाना। लम्बे दाँतों का मतलब है माँसाहारी अर्थात चीर-फाड़ करने वाला होना, लम्बे नाखून अर्थात चोरी, लूट कर लोगों की शान्ति छीनने वाला। देवता का मतलब है देना; शिक्षा प्रेरणा, मदद व परिस्थिति के अनुसार जो चाहिए वह देना। उन्होंने कहा कि देवता लेता नहीं। हम ही कर्मों अनुसार राक्षस और हम ही कर्मों अनुसार देवता हैं। राजयोग द्वारा हम कर्मों की गुह्यता को जान अपने कर्मों को परिवर्तन कर दैवी गुणों को जागृत कर देवता बन सकते हैं। इस अवसर पर शोभा, विजय बहुगुणा, प्रीति जोशी, प्रभा, राकेश कपूर, सुलक्षणा, विनोद शर्मा, सरोजिनी, पुष्पा, राजकुमार, विजयलक्ष्मी, कवीता आदि मुख्य रूप से मौजूद रहे।