हरिद्वार। भूमापीठाधीश्वर स्वामी अच्युतानंद तीर्थ ने द्वारका-शारदा पीठ के शंकराचार्य पद को त्याग दिया है। लंबे समय से विवादों में घिरे रहने के बााद उन्होंने ये फैसला लिया। उन्होंने शनिवार को काशी (वाराणसी) में इसकी घोषणा की।
हरिद्वार स्थित भूमानिकेतन में अधिकृत कार्यालय से जारी किए गए स्वामी अच्युतानंद तीर्थ ने अपने लिखित बयान में इसकी जानकारी देते हुए बताया कि वर्ष 2016 में इस पद पर प्रतिष्ठापित होने के बाद से ही लोगों ने उनकी पद-प्रतिष्ठा को विवादित बना दिया था और लगातार इसे लेकर टीका-टिपण्णी कर रहे थे, जिससे व्यथित होकर उन्होंने यह कदम उठाया। उन्होंने बताया कि उनके गुरु ने उन्हें किसी भी तरह के लोभ, मोह और प्रभाव से दूर रहने की शिक्षा दी थी, जिसका अनुसरण करते हुए उन्होंने विवाद का विषय बन रहे द्वारका-शारदा पीठ के शंकराचार्य पद का बिना किसी शर्त के त्याग कर अहं से मुक्ति प्राप्त कर ली। भूमापीठाधीश्वर स्वामी अच्युतानंद तीर्थ ने वर्ष 2016 में काशी विद्वत परिषद के एक धड़े के विद्वानों की उपस्थिति में द्वारका-शारदा पीठ के शंकराचार्य की पदवी शंकराचार्य स्वामी स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के इस पद पर विराजमान रहते हुए धारण की थी। जिसके चलते पहले ही दिन से उनका विरोध शुरु हो गया था।
इस मामले में द्वारका-शारदा पीठ के दांडी स्वामियों की ओर से द्वारका थाने में उनके खिलाफ अनाधिकृत तरीके से शंकराचार्य का पद हासिल करने का आरोप लगाते हुए रिपोर्ट दर्ज कराई थी। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने उनकी नियुक्ति को अवैध ठहराया था। काशी विद्वत परिषद के लोगों ने भी बाद में वाराणसी में सभा कर उनकी नियुक्ति को गलत ठहराते हुए स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को ही द्वारका-शारदा पीठ का शंकराचार्य माना था।
इसके बाद से ही स्वामी अच्युतानंद तीर्थ का शंकराचार्य पद विवादों के घेरे में आ गया था। इसके चलते तकरीबन दो वर्ष तक वे चाह कर भी द्वारका-शारदा शंकराचार्य पद की द्वारका स्थित मूल पीठ पर नहीं जा सके, हालांकि उन्होंने वहां जाने की घोषणा की थी। उनकी इस घोषणा के साथ ही इस पीठ को लेकर उनके साथ चला आ रहा विवाद भी समाप्त हो गया।