हरिद्वार। अखाडा़ परी की प्रमुख और गायत्री त्रिवेणी प्रयाग पीठाधीश्वर जगद्गुरु त्रिकाल भवंता सरस्वती महाराज शंकराचार्य ने अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरि महाराज तथा 11 अन्य महंतों के विरुद्ध मानहानि का वाद इलाहाबाद के एक न्यायालय में दायर किया है। जिसमें सुनवाई हेतु आगामी 17 फरवरी की तिथि नियत की गई है। महंत नरेन्द्र गिरि व अन्य संतों पर आरोप लगाये गए हैं कि उन्होंने त्रिकाल भवन्ता को फर्जी संतों की सूची में सम्मिलित कर उसका प्रचार कराया, जिससे उनको मानसिक कष्ट हुआ तथा समाज एवं शिष्यों में उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है।प्रेस को जारी विज्ञप्ति में त्रिकाल भवंता सरस्वती शंकराचार्य ने बताया कि सोसाइटी रजिस्ट्रेशन अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत अखाड़ा परी की वह प्रमुख हैं और हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार व महिलाओं की गरिमा स्थापित करने के लिए कार्य कर रही हैं। उन्होंने संन्यास की दीक्षा महंत रामगोविन्द दास से ली। गृहस्थ का परित्याग कर अपने हजारों शिष्यों के साथ गुरु शिष्य परम्परा के तहत संन्यास एवं संत धर्म का पालन कर रहीं हैं। उन्होंने कहा अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अपंजीकृत संस्था है। इसका न कोई संविधान अथवा नियमावली है और न ही भारतीय संविधान में इसे कोई विधिक अधिकार हैं। फिर भी एक अपंजीकृत संस्था के अध्यक्ष ने पंजीकृत संस्था अखाड़ा परी के प्रमुख को फर्जी संतों की सूची में डालकर उसका प्रचार-प्रसार कराया जिससे उनके मान की हानि हुई है। उन्होंने उन 11 महंतों को भी प्रतिवादी बनाया है जिन्होंने अखाड़ा परिषद के उस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके माध्यम से उनको फर्जी संत बताया गया था। उन संतों में महंत प्रेम गिरि, महंत गोविन्दानन्द ब्रrाचारी, महंत धर्मदास तथा महंत भगतराम सहित अन्य अखाड़ों के संत सम्मिलित हैं। उन्होंने बताया कि अपंजीकृत परिषद बनाकर उनको फर्जी संत महात्मा घोषित करने का कोई अधिकार न होने के बाद भी महंत नरेन्द्र गिरि ने उनकी तथा उनकी पंजीकृत संस्था अखाड़ा परी की प्रतिष्ठा धूमिल करने के उद्देश्य से सूची जारी की जो कानून की दृष्टि में जुर्म है और भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के अन्तर्गत दंडनीय अपराध है।