कोरोना के खिलाफ जंग का संदेश दे रही डॉ. निशंक द्वारा अस्पताल में लिखी कविता

गढ़वाल का विकास न्यूज, नई दिल्ली। संघर्षो के बीच सफलता का शिखर छूने वाले केंद्रीय मंत्री व हरिद्वार सांसद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक कोरोना जैसी भयंकर बीमारी पर विजय प्राप्त कर लगभग पूरी तरह स्वस्थ्य हो चुके हैं और जल्दी ही अस्पताल से घर आ सकते हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि डॉ. निशंक अस्पताल में आराम करने के साथ ही न केवल विभागीय कार्य निपटाते रहे, अपितु कोरोना से जंग करते हुए मन में आए भावों को शब्दों का रूप देते रहे। डॉ. निशंक ने एक जंग लड़ते हुए शीर्षक से जो कविताएं लिखी है, उस संग्रह से एक कविता कोरोना इन दिनों सोशल मीडिया में खासी सुर्खियों में हैं।
सकारात्मक विचारों के साथ डाॅ0 निशंक ने कोरोना को परास्त कर उन लोगों को एक प्रेरक संदेश दिया है, जो इस बीमारी का नाम सुनने मात्र से सिहर जाते हैं और भय से कांपने लगते हैं। डाॅ0 निशंक ने कविता के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि बीमारी से लड़ने के लिए मन में सकारात्मक विचारों का होना बहुत आवश्यक है।
“कोरोना”
“हार कहाँ मानी है मैंने?
रार कहाँ ठानी है मैंने?
मैं तो अपने पथ-संघर्षों का
पालन करता आया हूँ।
क्यों आए तुम कोरोना मुझ तक?
तुमको बैरंग ही जाना है।
पूछ सको तो पूछो मुझको,
मैंने मन में ठाना है।
तुम्हीं न जाने,
आए कैसे मुझमें ऐसे?
पर,मैं तुम पर भी छाया हूँ,
मैं तिल-तिल जल
मिटा तिमिर को
आशाओं को बोऊँगा;
नहीं आज तक सोया हूँ
अब कहाँ मैं सोऊँगा?
देखो, इस घनघोर तिमिर में
मैं जीवन-दीप जलाया हूँ।
तुम्हीं न जाने आए कैसे,
पर देखो, मैं तुम पर भी छाया हूँ।”
(दिल्ली, एम्स कक्ष-704)

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