देहरादून, (गढ़वाल का विकास न्यूज)। काला मोतिया की पहचान अगर प्रारंभिक चरणों में कर ली जाए तो दृष्टि को कमजोर पडऩे से रोका जा सकता है। ऐसे में नियमित जांच कराएं और आंखों में होने वाले किसी भी नए बदलाव या लक्षण पर ध्यान दें। विश्व ग्लूकोमा सप्ताह के तहत आयोजित जागरूकता गोष्ठी में यह बात चिकित्सकों ने कही।
दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय में आयोजित गोष्ठी के जरिए काला मोतिया (ग्लूकोमा) के प्रति जागरूक किया गया। चिकित्सा अधीक्षक डॉ. केसी पंत ने कहा कि काला मोतिया किसी को किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन उम्रदराज व्यक्तियों में मामले अधिक देखे जाते हैं। नियमित रूप से आंखों की जांच कराते रहें, ताकि सही समय पर बीमारी डायग्नोस कर उचित उपचार किया जा सके। नेत्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. सुशील ओझा ने कहा कि इस रोग के बारे में जागरूकता कम है, लेकिन सतर्कता बरतने पर इससे बचा जा सकता है। उन्होंने बताया कि इस समस्या के दौरान आंखों में तरल पदार्थ का दबाव बढ़ जाता है। शुरुआती अवस्था में न तो इस बीमारी के कोई लक्षण प्रकट होते हैं और न ही कोई संकेत। पल-पल की देरी मरीज को उसकी दृष्टि से दूर करती चली जाती है। डॉ. ओझा ने बताया कि अगर आपकी उम्र 40 साल से अधिक है, परिवार में किसी को काला मोतिया है, उच्च रक्तचाप या डायबिटीज है और आंख में कभी चोट लगी है तो काला मोतिया का खतरा हो सकता है। चश्मे का नंबर बार-बार बदलना, अंधकारमय जगह पर देखने में असहजता, प्रकाश के आसपास इंद्रधनुषी छवि दिखना, धुंधली दृष्टि, सिरदर्द, आंखों में तेज दर्द आदि ग्लूकोमा के संकेत हो सकते हैं। इस दौरान डॉ. अशोक कुमार, डॉ. चंद्रशेखर, डॉ. दुष्यंत उपाध्याय, एमबीबीएस के छात्र व आम जन मौजूद रहे।