निराकार-परमात्मा से जुड़कर ही, मन होता है आन्नदित: राजीव बिजल्वाण

देहरादून (गढ़वाल का विकास न्यूज)। निराकार परमात्मा ही अटल है, सत्य है, एकरस है, पूर्ण आन्नद स्वरूप है। अतः इससे जुड़कर मिलने वाला आन्नद ही स्थायी और एकरस होता है। हमेशा से निश्चित मत रहा है कि स्थायी सुख अर्थात आन्नद केवल परमान्नद-ईश्वर से जुड़कर ही मिल सकता है। इस आश्य के विचार सन्त निरंकारी मण्डल के तत्वावधान में आयोजित रविवारीय सत्संग में स्थानीय ज्ञान प्रचारक राजीव बिजल्वाण ने माता सुदीक्षा सविन्दर हरदेव जी महाराज के सन्देश देते हुये व्यक्त किये।
उन्होनें आगे कहा कि सद्गुरू की जब कृपा होती है तो सन्तों-महात्माओं से मिला देता है जब पूर्ण सन्त-महात्मा मिल जाते हैं तो इस ज्ञानरूपी ईश्वर के दर्शन करा देता है। निरंकार की अनुभुति से जीवन में सकारात्मक भावों का संचार होता हैं इस प्रकार हमारे जीवन में परमात्मा का बोध होने के बाद ज्ञान की चमक निरंतर बनी रहती हैं। जीवन में सकारात्मक विचार आते हैं तो हम मिलवर्तन, प्रेम, भाईचारे, दया को जीवन में अपनाते हैं और यदि हम नकारात्मक विचारों में रहते है तो हमारे जीवन में अंहकार, लड़ाई-झगड़ा, वैर, द्वेष की भावना बनी रहती हैं। जीवन सुखी और परलोक सुहेला हो जाता हैं।


उन्होनें कहा कि परब्रह्म का ज्ञान हो जाने के पश्चात मनुष्य देवत्व की ओर अभिमुख हो जाता हैं। फलस्वरूप सभी मानवीय गुण इसके व्यवहार में झलकने लगते है। इन मानवीय गुणों से प्रेरित होकर ही सन्तजन समाज-कल्याण के कार्यो में बढ़-चढ़ कर भाग लेते है। साथ ही सद्गुरू के आने वाले वचनो को मानकर सेवा, सत्संग, सुमिरण करता जाता है। साध-संगत की सेवा सद्गुरू का स्वरूप मानता है। अन्त में सभी के सुखो की कामना करते हुये कहा कि सारे सुख पा देना हम सब की झोली में, फिर भी मिला के रखना सन्तो की टोली में। प्रवचनों से पूर्व कई सन्तों-भक्तों, वक्ताओं, गीतकारों ने अपने उद्गार प्रकट किये। संचालन अजय काम्बोज ने किया।

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