देहरादून। प्रदेश सरकार ने करीब 20 साल बाद सरकारी अधिकारियों के सरकारी वाहनों के निजी इस्तेमाल पर लिए जाने वाले पैसे की दर चार गुना बढ़ा दी है। सरकारी खर्च में मितव्ययता रोकने के लिए सरकारी गाड़ियों के निजी इस्तेमाल व रखरखाव के लिए नीति बनाई गई है। प्रमुख सचिव वित्त राधा रतूड़ी ने इस बाबत आदेश जारी कर दिया है। यह बात और है कि सरकारी गाड़ी के निजी इस्तेमाल की सार्वजनिक रूप से आलोचना होती रही है। बहरहाल त्रिवेंद्र रावत सरकार ने फैसला लिया है कि अब सरकारी वाहन का निजी इस्तेमाल करने पर अफसरों को हर महीने 2000 रुपये भरने होंगे। यह बात और है कि अब तक हर माह 400 व 500 रुपये देकर अफसरों की मौज कट रही थी।दरअसल, सरकारी गाड़ियों के वित्तीय अनुशासन बनाए रखने के लिए उत्तर प्रदेश के जमाने में 1997 व 1999 में कुछ नियम बनाए गए थे और इस बाबत आदेश जारी किए गए थे। तब यह तय किया गया था कि जिन भी सरकारी अधिकारियों को राजकीय वाहन आवंटित हैं वे महीने में 200 किलोमीटर तक अपने वाहनों का इस्तेमाल निजी कायरे के लिए कर सकते हैं । वाहन यदि कार हो तो अधिकारी को 500 रुपये महीना और अगर जीप हो तो 400 रुपये महीना जमा करना होता था। उप्र के जमाने की ये दरें प्रदेश में अब तक चली आ रही थीं जबकि इन बीस साल में वाहनों के प्रकार भी बदल गए और उनका इस्तेमाल करने वाले अधिकारियों की संख्या भी प्रदेश में खासी बढ़ गई। इस दिशा में राज्य गठन के बाद से प्रदेश की किसी भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया। एक जमाने में सरकारी अफसर एंबेसडर कार या जीप इस्तेमाल करते लेकिन मौजूदा वक्त में बहुत से अफसर महंगी एसयूवी का इस्तेमाल करने लगे हैं। इन वाहनों में तेल भी अधिक खर्च होता है। ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार ने अफसरों पर उदारता बरती है और उनकी जेब पर बहुत हल्का हाथ रखा है। यह भी उस वक्त में जब अफसर सातवें वेतनमान का लुत्फ ले रहे हैं और उनकी तन्ख्वाहें दो दशक में 10से 15 गुना बढ़ गई हैं।