देहरादून (गढ़वाल का विकास न्यूज)। उत्तराखंड के जिला उधमसिंह नगर के ग्राम जगतपुरा स्थित प्राचीन अटरिया मंदिर में लगने वाले मेले का उत्तराखंड के इतिहास में अलग ही महत्व है। राजा महाराजाओं के समय में जब मुग़ल साम्राज्य द्वारा मंदिरों की अनदेखी कर उनका वशीकरण किया जा रहा था तो मुगल साम्राज्य द्वारा इस मंदिर को ध्वस्त कर के सारे सामान माता की मूर्ति इत्यादि को एक कुएं में दबाकर कुँए पाट दिया गया था।
एक बार राजा रूद्र द्वारा भ्रमण के दौरान उन के रथ का पहिया किसी कुएं के मुख पर आकर फस गया था जिसको निकालने में जब सैनिकों को विलंब हुआ तो, सैनिकों को राजा रूद्र ने निर्देशित करते हुए कहा कि मुझे नींद आ रही है और मेरे विश्राम की व्यवस्था की जाए राजा के विश्राम के लिए सैनिकों ने एक पेड़ के नीचे राजा के विश्राम की व्यवस्था की जा राजा को उस पेड़ की छांव में नींद आ गई राजा को स्वप्न में माता अटरिया दिखाई दी और उन्होंने राजा को आदेश दिया कि हे राजन जहां तेरे रथ का पहिया फंसा है वह मेरे मंदिर की मूर्तियां और मुझे दबा कर रखा गया है अगर आप इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराकर यहां पर मेला लगाएंगे तो आपके राज्य में कभी किसी प्रकार की कोई भी पता नहीं आएगी आप का राज्य सदैव परिपूर्ण रहेगा, सदैव धन्यधान से भरा रहेगा किसी प्रकार के रोग इत्यादि से आपका राज्य दूर रहेगा आपकी कीर्ति समस्त संसार मे फैलेगी और जो भग्त मेरे मंदिर में आकर अपनी सच्चे दिल से मन्नत को मांगेगा मैं उसकी मन्नत को पूरा करूंगी। इतना कहते हुए माता अंतर्ध्यान हो गई राजा का स्वप्न खुला और खुलते ही राजा ने तत्काल सैनिकों को जहां पर रखा था वहां खुदाई करने के लिए आदेश दिया। खुदाई में माता की कुछ मूर्तियां व अन्य सामान निकला जिसे राजा ने व्यवस्थित ढंग से लगा कर यहां पर अटरिया मंदिर का निर्माण किया। यह एक प्रचलित हमारे पूर्वजों द्वारा बताए गए कहानी है जिसे हम लगातार सुनते आ रहे हैं।
इसके उपरांत आज यहीं इसी स्थान पर वही पेड़ विराजमान है जिसका उल्लेख उक्त कहानी में किया गया है वह व्रक्ष आज एक विशाल व्रक्ष बन चुका है जिसे नाम नहीं दे सकते, क्योकि इसमे कौन सा पेड़ कहा से निकल कर जुड़ रहा है यह कहना सम्भव नही है इस पेड़ में को पंच बृक्ष कहा जाता है कि इसमें वटवृक्ष, पीपल, नीम, आम और बरगत एक साथ नजर आते हैं इस पेड़ की मंदिर प्रांगड़ में अलग ही छटा है पेड़ की लताएं स्वयं बयान करती हैं कि पेड़ सेकड़ो वर्ष से भी अधिक पुराना होगा क्योंकि इसकी लताये 30 फीट ऊपर जाकर फिर नीचे मंदिर के गेट को छूकर अपने पुराने होने का बोध भी कराती हैं। यह पेड़ इस मंदिर में बिल्कुल के सामने मुख्य द्वार लगा है जहां पर लोग अपनी मन्नत को पूरा कराने के लिए पेड पर लालचुन्नी से गांठ बांधकर अपनी मन्नत मानते हैं और अपनी मन्नत पूरी होने के उपरांत इस गांठ को उसी प्रकार से खोलते हैं। आप भी आएं और अपनी मन्नत को माने और मां का आशीर्वाद प्राप्त करें।मेला प्रबंधन द्वारा बताया गया है कि मेला इस बार 3-मई तक चलने वाला है।