अपने दिल में छुपी अलौकिक शक्ति को पहचानने के लिये अपने भीतर ध्यान दें

कमलेश डी. पटेल
जिन चीजों का अधिक उपयोग किया जाता है, वे बीतते समय के साथ फीकी पड़ जाती हैं। उदाहरण के लिये, हमें खुशी पसंद है। दुख कौन चाहता है? क्या हम दुख को आमंत्रित करते हैं? कोई नहीं करता। हम हर समय खुशी ही चाहते हैं, इसलिये अपनी इंद्रियों का अत्यधिक उपयोग करते हैं- शारीरिक और भावनात्मक- खुद को खुशी से भरने के लिये। खुद को खुश रखने के लिये हमें भीतर और बाहर अधिक से अधिक प्रोत्साहन चाहिये। यह इंद्रियों का अत्यधिक उपयोग है, भीतरी और शारीरिक।
दर्द, दुर्गति और उदासी में क्या होता है? इन्हें कोई नहीं चाहता। यदि फिर भी यह हमारे रास्ते में आएं, तो हम इन पर ध्यान नहीं देते हैं- मानो ध्यान नहीं देने से वे चले जाएंगे! चूंकि हम इन्हें नहीं चाहते हैं, इसलिये थोड़ी दुर्गति भी हमारे लिये बड़ी होती है। अत्यधिक उपयोग से खुशी फीकी पड़ जाती है, जबकि उदासी पर ध्यान न देने से वह विकट होती जाती है। यह आपको रेजर की तरह काटती है। आप उससे जितना बचते हैं, वह उतना ही आपको परेशान करती है।
अपेक्षाएं भी ऐसी ही होती हैं, यदि हम अपने परिजनों से बहुत ज्यादा अपेक्षा करते हैं, तो वह भी भावनात्मक स्तर पर फीकी होती जाती है। ऐसा नहीं है कि मैं आपसे दुख को अपनाने के लिये कह रहा हूँ, लेकिन यदि वह आपके रास्ते में आता है, तो उसे छोटा मत समझिये। जब आपकी इंद्रियाँ दुख, आदि को झेलें, तब उससे गुजरिये और भगवान को धन्यवाद दीजिये। सुख और दुख हमेशा के लिये नहीं होता है। क्या आप हवा को अपनी मुट्ठी में रख सकते हैं? नहीं। यह क्षणिक है। भावनात्मक उतार-चढ़ावों पर भी यही लागू होता है। इसलिये अपने भीतर छुपे भगवान पर ध्यान देना ठीक रहता है, जोकि आपके दिल में मौजूद अलौकिक शक्ति है। चाहे आप भगवान को न मानें, फिर भी यह ठीक है। इस प्रकार ध्यान लगाएं कि आपके मस्तिष्क का संतुलन बना रहे। संतुलित अवस्था में ही आप जीवन का आनंद ले सकते हैं।
जीवन में चीजों को ऐसे स्वीकार करें कि वे आपको फीका या पैना न बनाएं। यदि दुख आता है, तो उसकी आदत डालें, उससे बचें नहीं। अन्यथा थोड़ी सी असुविधा भी बड़ा कष्ट दे सकती है और इसलिये बाबूजी महाराज (राम चंद्र, शाहजहांपुर वाले) दुर्गति को भी आशीर्वाद के रूप में लेने की सलाह देते हैं। दुर्गति को आशीर्वाद के रूप में लेना बहुत कठिन है, यदि आप उसके पीछे का कारण न समझें।
अत्यधिक उपयोग से फीकापन और व्यर्थता आती है
मेरी दृष्टि में खुशी का अत्यधिक उपयोग होने से वह फीकी हो जाती है, जबकि दुख का अत्यधिक उपयोग होने पर वह पैना होता जाता है। जब हम छोटे थे, हमारे पास बहुत सारे खिलौने नहीं थे और जितने भी थे, वह परिवार में साझा होते थे, पड़ोसियों में भी! आज बच्चों के कमरे खिलौनों से भरे हैं और खुशी फीकी पड़ गई है। हम नहीं चाहते कि हमारे बच्चे अपने जीवन में दुख या कठिनाई का सामना करें, लेकिन हमें यह बोध नहीं है कि ऐसा करने से हम उन्हें खराब कर रहे हैं। बाद में हम शिकायत करते हैं कि बच्चे बिगड़ गये हैं। एक के बाद एक, कई रोमांच हो सकते हैं- कई सारे रोमांचक पेन, खिलौने और नोटबुक। व्यर्थ चीजें बहुत हैं। यह आदत में आ जाता है। दिमाग व्यर्थ चीजों के लिये खुल जाता हैय और यह समय के प्रबंधन पर भी लागू होता है।
मेडिसिन के क्षेत्र में भी ऐसा होता है। कोई व्यक्ति दवा की एक खुराक से शुरूआत करता है, उदाहरण के लिये 5 मि.ग्रा. की गोली, लेकिन कुछ महीने के बाद वह काम करना बंद कर देती है और उसकी खुराक बढ़ानी पड़ती है। हमारा सिस्टम बहुत जल्दी प्रोत्साहन का आदी हो जाता है, वह खूब खुशियाँ चाहता है और असुविधा तो बिलकुल नहीं चाहता!
(कमलेश डी. पटेल राज योग मेडिटेशन के सहज मार्ग सिस्टम में चैथे आध्यात्मिक मार्गदर्शक हैं। वह आध्यात्म के उन विद्यार्थियों के लिये आदर्श हैं, जो पूर्वी हृदय और पश्चिमी मस्तिष्क का सटीक मिश्रण चाहते हैं। वे बहुत यात्रा करते हैं और सभी प्रकार की पृष्ठभूमि तथा क्षेत्रों के लोगों से मिलते हैं और आज के युवाओं पर विशेष ध्यान देते हैं।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *