देहरादून। भक्त सेवा को भक्ति का अभिन्न अंग मानते हैं, उत्साहपूर्वक की गई सेवा से ही आनन्द प्राप्त होता है। उक्त आशय के उद्गार सन्त निरंकारी भवन, रैस्ट कैम्प में आयोजित रविवारीय सत्संग में दिल्ली से आए रीजनल संचालक शिव कुमार जुनेजा ने व्यक्त किये।
उन्होंने आगे कहा कि सेवा वही अच्छी होती है जो दिल से की जाए। सेवा का महत्व सेवादार ही समझ सकता है वही जानता है कि भक्ति क्या है? भक्त एक खिला हुआ फूल होता है और भक्ति उसकी महक हुआ करती है। भक्त महापुरुष सेवा करके भी कर्ता भाव नहीं रखते। वे सेवा का कर्ता खुद को न मानकर प्रभु की कृपा मानते है और जानते हैं। गुरुमुख महापुरुष जो भी कार्य करते हैं, हमेशा अर्पण भाव से करते हैं एवं यही मानते हैं कि उनकी सेवा किसी भले काम में ही लग रही है। वहीं मंजीत सिंह सेवादल संचालक जी ने भी कहा कि सेवा तो सद्गुरु की है और सारे सुख ही निष्काम सेवा भाव से ही मिलते है।
अपना किया कुछ न होए। करे राम होए है सोए।।
सतिगुरु की सेवा सफलु है जैको करो चितु सांई।
उन्होंने कहा कि वास्तव में भक्त यह मानता है कि दातार या मालिक करने वाला है और इस भावना से ही अपने कर्म को करता हैं कर्म करते हुए यह किसी स्तुति की लालसा या किसी और चीज की कामना नहीं रखता है। जैसे महापुरुष संत हमेशा यही कहते रहते है कि हमने काम करना है, कामना नहीं करनी है। सत्संग समापन से पूर्व अनेकों सन्तों-भक्तों, प्रभु प्रेमियों ने गीतों, प्रवचनों द्वारा संगत को निहाल किया। मंच संचालन विजय रावतजी ने किया।