देहरादून। अशासकीय महाविद्यालय शिक्षणोतर कर्मचारी परिषद ने लिपिकीय सवंर्ग के पदनाम व वेतनमान को लेकर जारी शासनादेश पर रोष जताया। परिषद के नेताओं ने कहा कि शासनादेश में सिर्फ दो पदों को ही शामिल किया गया। परिषद की कार्यकारिणी की आपात बैठक में उच्च शिक्षा विभाग द्वारा सरकारी सहायता प्राप्त महाविद्यालयों के लिपिकीय संवर्ग के लिए जारी शासनादेश पर र्चचा की गई। परिषद के महामंत्री गजेन्द्र कुमार सिंह ने कहा कि विभाग द्वारा शिक्षणोत्तर कर्मियों की मांगों को नजरअंदाज किया गया है। शासन द्वारा जारी शासनादेश में नैत्यिक लिपिक व वरिष्ठ लिपिक के पदनामों को कनिष्ठ सहायक व वरिष्ठ सहायक का संशोधित पदनाम देते हुए ग्रेड वेतन 2000 व 2800 रुपये अनुमन्य किया गया है। उन्होंने कहा कि महाविद्यालयों में कार्यरत मुख्य लिपिक व कार्यालय अधीक्षक (ग्रेड एक व दो) का शासनादेश में कोई उल्लेख नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि उक्त शासनादेश माध्यमिक अनुभाग (चार) द्वारा अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक व जूनियर विद्यालयों के लिए जारी शासनादेश की कार्बन कापी है। दो पदों के ग्रेड वेतन व पदनाम को लेकर पुन: विसंगति उत्पन्न हो गई। उन्होंने कहा कि उक्त शासनादेश लिपिक संवर्ग के हितों के विपरीत है। बैठक में केएन घोष, एचएस राणा, भगवान सिंह, राजन, महावीर प्रसाद कंसवाल, मदन मोहन कन्नौजिया, सुभाष आदि शामिल थे।