आज के तनाव भरे जीवन में कुंठा और तमाम मानसिक-शारीरिक परेशानियां लगभग हर आदमी को घेरे हुए हैं। बीमारी की स्थिति में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक, पारिवारिक आदि विभिन्न कारण भी हो सकते हैं पर नकारात्मक वातावरण की भूमिका प्रमुख होती है। डर, गुस्सा, घृणा, ईर्ष्या, तनाव, उपेक्षा आदि नकारात्मक वातावरण के निर्माण में सहायक होते हैं। ऐसे में जब परिजन. मित्र. परामर्शदाता. चिकित्सक आदि आपकी किसी प्रकार की सहायता न कर पाएं तब सिवा किंकर्तव्यविमूढ होकर बैठने के क्या रास्ता हो विश्वास सकता है! पर ऐसी बात नहीं है, हताशा में भी रास्ता होता है और वह रास्ता होता है प्रार्थना काप्रार्थना नकारात्मक वातावरण के निर्माण पर नियंत्रण रखने का कार्य करती है। प्रार्थना में अनदेखी सकारात्मक शक्ति होती है। लगभग सभी धार्मों में प्रार्थना के महत्व को स्वीकार किया गया है। प्रार्थना प्रायः हर धार्म का एक महत्वपर्ण अंग होती हैनकारात्मकता का दढ इच्छा शक्ति के साथ-साथ प्रार्थना, धयान और सकारात्मक सोच से सामना किया जा सकता हैप्रार्थना धौर्य और आशावादी सोच को बल प्रदान करती है। जिसका प्रार्थना द्वारा हल सम्भव नहीं है। इसका अर्थ यही है कि प्रार्थना में असीम शक्ति होती है। प्रार्थना अपने लिए की जाए या दूसरों के लिए, यह अपना सकारात्मक प्रभाव अवश्य दिखाती है। डिवाइन लाझ सोसाइटी के संस्थापक स्वामी प्रार्थना शिवानन्द का मानना है कि ऐसी कोई समस्या, परेशानी और द:ख नहीं है जिसका समाधान प्रार्थना से संभव नहीं है। प्रार्थना बुरे या नकारात्मक भावों को भी समाप्त कर देती है। वेदान्त और गीता पर दिल्ली के श्री अरविन्द आश्रम में कार्यशालाएं आयोजित कर रहे विद्वान प्रशान्त खन्ना की दृष्टि में प्रार्थना एक सर्वाधिाक सशक्त माधयम प्रार्थना है। पर यह बात थोड़ी अविश्वसनीय लगती हैप्राचीन काल से ही लोग अपनी विभिन्न इच्छाओं की पर्ति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते आ रहे हैं। इस बात का किसी भी स्थिति में इससे कोई सम्बन्धा नहीं कि हमारे साथ या हमारे आसपास क्या हो रहा है। यह माना जाता है कि प्रार्थना के सभी रूपों की अपनी सीमाएं हैंअपनी इच्छा पूर्ति के लिए की जाने वाली प्राथना में अर्थात कहीं न कहीं अहंकार का भाव भी सम्मिलित रहता है। दुनिया औरों के हित के लिए की जाने वाली प्रार्थना अधिक समाधान महत्वपूर्ण और उपयोगी है। अपने आसपास ही हमें ऐसे कम अनेक लोग मिल जाते हैं जिन्होंने प्रार्थना के प्रभाव और है शक्ति को अनुभव किया है। आज के वैज्ञानिक उपलब्धियों कि भरे युग में अनगिनत लोग प्रार्थना की महला को स्वीकार लेकिन करने से कतराते हैं। अनेक लोग ईश्वर के अस्तित्व पर कि विश्वास नहीं करते। कुछ भी हो, प्रार्थना आज भीके प्रासंगिक है और असंख्य लोग नियमित-अनियमित रूप नहींसे अपने लिए या औरों के लिए प्रार्थना करते हैं. उनके मन-मस्तिष्क में प्रार्थना के महत्व को कम नहीं किया जा । सकता। प्रार्थना उन्हें आशावादी और धैर्यवान बनाती है। चाहिएवे इसे जनकल्याण का माध्यम भी मानते हैं जिसमें कुछ भी खर्च नहीं होता। प्रार्थना आध्यात्मिक अभिव्यक्ति का सकतेप्राचीनतम, सावभौमिक तथा सवाधिक सरल र सहज जहर रूप है। हर धार्म-समुदाय में प्रार्थना की सदियों से परम्परा रही है। कष्ट-परेशानी के समय सहज ही हमारे |कि मन-मस्तिष्क में उससे मुक्ति पाने की इच्छा बलवती होने वाले लगती है। इस प्रक्रिया में जाने-अनजाने किसी न किसी विरुद्ध रूप में प्रार्थना स्वतः शामिल हो जाती है। प्रार्थना अपने मन की बात को सर्वशक्तिमान तक पहुंचाने और उससे सार्थक प्रतिक्रिया की इच्छा या आशा का एक सशक्त रूप है। कहा भी जाता है- जहां दवा भी |काम नहीं आती वहां दुआ काम आती है। भले ही हर रूप समस्या का समाधान प्रार्थना से सम्भव न हो। तन-मन के दु:ख और कष्ट को प्रार्थनाएं समाप्त न कर पाएं पर प्रार्थना से आशा बंधाती है, राहत मिलती है, विनम्रता आती है और अहंकार कम होता या मिटता है। विशेष रूप से भ्रम की स्थिति में प्रार्थना से बढकर कोई और उपाय नहीं है। प्रार्थना करते हुए सब कुछ ईश्वर पर छोड देना ही श्रेयष्कर होता है।