देहरादून। सच्चे भक्त की पहचान यही होती है कि वह अपना सर्वस्व अर्पण करके स्वयं को सद्गुरु के चरणों में न्यौछावर कर देता है। तभी उसके मन में प्रेम, नम्रता, सद्भावना, सहनशीलता, समता जैसे गुण वास करने लगते हैं।
उक्त उद्गार सत्संग कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सन्त निरंकारी मिशन नई दिल्ली से पधारे केन्द्रीय ज्ञान प्रचारक डा. जगन्नाथ हंस ने संत निरंकारी सत्संग भवन रेस्ट कैम्प के तत्वावधान में उपस्थित भक्तों को निरंकारी सद्गुरु माता संविन्दर हरदेव महाराज का पावन संदेश देते हुए व्यक्त किया।उन्होंने कहा कि यह संसार दुखों का घर है। इस संसार में प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी रूप से दुखी है। इन दुखों को दूर करने का एक मात्र साधन नाम आधार है। विद्धान मात्र ग्रन्थों का ज्ञाता होता है, परन्तु सन्त इस परमात्मा का ज्ञाता होता है। इसी को मोक्ष या मुक्ति कहा गया है। ज्ञान अगर प्रेम में बदल जाये, तो वह भक्ति है। भक्ति का मर्म केवल सद्गुरु से ही प्राप्त होता है। इसीलिए सद्गुरू सदैव अपने गुरूसिख को प्रेम के मार्ग पर चलने की शिक्षा देता है। प्रेम की पहचान त्याग और समर्पण है। प्रेम भावना का विषय है, बुद्धि का नहीं। यह हृदय के भावों से उत्पन्न होता है। प्रेम का भाव ही मन से अंहकार, ईष्या, बैर और द्वेष जैसी भावनाओं को समाप्त कर सभी से जोड़ने का काम करता है। कार्यक्रम का संचालन भगवत प्रसाद जोशी ने किया।