भारतीय जनमानस मकर संक्रांति को सूर्य के उत्तरायण होने के साथ-साथ भीष्म पितामह के देह त्यागने के दिन के रूप में जानता है। इस दिन खिचड़ी के सेवन के साथ-साथ पवित्र नदियों में स्नान और तिल दान का विशेष महत्त्व है महाभारत के भीष्म पर्व में इसका उल्लेख है।
— डा0 मुरली धर सिंह, उप निदेशक सूचना, अयोध्या धाम/प्रभारी मुख्यमंत्री मीडिया सेन्टर, लोक भवन लखनऊ।
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लखनऊ/अयोध्या। भारतीय सनातन संस्कृत में संक्रांति का व्यापक महत्व है इसका अनेक धर्म शास्त्रों में उल्लेख है। पाणिनी सूत्र के अनुसार संक्रांति का अर्थ होता है सुंदर क्रांति अर्थात सौरमंडल में ग्रहों के राजा सूर्य देव जी हैं या महर्षि कश्यप के एवं आदिति के संतान हैं यही जीव जगत के जीवन देने वाले हैं। यदि सूर्य देव अनुपस्थित हो जाएं तो संसार स्वयं ही नष्ट हो जाएगा इसलिए जीवन के मूल स्त्रोत हैं इनका ऋग्वेद में एवं भविष्य पुराण में व्यापक उल्लेख मिलता है।
हमारे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नवग्रह हैं इसके अलावा तीन और ग्रह जो जीवन की पद्धति को प्रभावित करते हैं जिन तीन ग्रहों का विशेष उल्लेख नहीं मिलता, केवल हम लोग सूर्य, बृहस्पति, मंगल, शुक्र बुध, शनि, राहु, केतु, चंद्र आदि के बारे में ही चर्चा करते हैं जो तीन अन्य ग्रह है वह सूर्य बृहस्पति एवं शनि के 3 उपग्रह है जो हमारे जीवन पर प्रकाश डालते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में 12 संक्रांति होती है जो लगभग 6-7 वर्ष के अंतराल पर आती है इससे हमारे जीवन में बायोलॉजिकल परिवर्तन होता है जिसको हम लोग जान नहीं पाते हैं। केवल हम लोग बचपन किशोरावस्था युवावस्था एवं वृद्धावस्था को ही जान पाते हैं पर वास्तव में हमारे जीवन काल में 6-7 वर्ष के अंतराल में 12 परिवर्तन होते हैं क्योंकि हम सभी लोग पंचतत्व से बने हैं।
पहला तत्व आकाश, दूसरा वायु, तीसरा अग्नि, चौथा जल, पांचवा भूतत्व या पृथ्वी सभी के पोषक सूर्य ही है, जैसे निश्चित अनुपात में जब तत्व मिलते हैं तब जीवन बनता है दो भाग हवा (हाइड्रोजन) व एक भाग ऑक्सीजन मिलता है तब “जल” बनता है अर्थात तत्व का मिलन ही जीवन का आधार है। इन तत्वों में उचित मात्रा में जब मिलान होता है तो समस्त जीव चराचर की उत्पत्ति होती है। इसका व्यापक उल्लेख गुरुदेव महर्षि व्यास देव द्वारा रचित भविष्य पुराण में किया गया है। कल मकर संक्रांति है अर्थात सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश कर लाभ देंगे यह राशि इनके पुत्र शनि देव के अधीन होती रहती है या भी कह सकते हैं कि पिता का पुत्र से मिलन हो रहा है जो सामाजिकता के दृष्टि से महत्वपूर्ण होता है।
सूर्य देव जी कि अपनी राशि सिंह राशि है इसमें संक्रांति 17 अगस्त 2023 को होगी तथा इसके अलावा कुंभ राशि में 13 फरवरी को, मीन राशि में 15 मार्च को, मेष राशि में 14 अप्रैल को वैशाखी के समय सूर्य उच्च राशि में होता है, वृष राशि में 15 मई को, मिथुन राशि में 15 जून को, कर्क राशि में 17 जुलाई को, कन्या राशि में 17 सितंबर को, तुला राशि में 17 अक्टूबर को, वृश्चिक राशि में 17 नवंबर को व धेनु राशि में 16 दिसंबर को होगी इसलिए हमारे संस्कृति में 12 संक्रांति है जो सामान जीवन और धार्मिक जीवन में शुभकारी होती हैं। हमें सभी को जानना चाहिए तथा स्नान आदि करके दान करते हुए सनातन संस्कृति को जानना चाहिए यह संक्रांति आज रात 2:53 बजे पर प्रारंभ हो रही है जो 15 तारीख को शाम लगभग 6:00 बजे तक रहेगी।
ज्योतिष विज्ञान के अनुसार सूर्य देव को ग्रहों का राजा कहा जाता है। पृथ्वी पर रहने वाले सभी धर्म व जाति के लोग बारह महीनों का साल मनाते हैं, चाहे वे कोई भी मान्यता के कैलेंडर को प्रयोग में लाएं। ज्योतिष शास्त्र में 12 राशियां व 12 घर का मूल सिद्धांत है। सूर्य 1 महीना हर राशि या हर घर में बिताते हैं अर्थात 30 दिन में सूर्य दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। इसका मतलब जब सूर्य देव एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, तो उसे संक्रांति कहते हैं। इसी प्रकार जब जब सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो वेदों के अनुसार उस दिन को श्मकर संक्रांतिश् कहते हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण में होते हैं।
मकरसंक्रांति के दिन सुबह स्नान करके दान करने के बाद ही भोजन करना चाहिए। इस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव के घर आते हैं। अतः शनि देव अपने पिता का स्वागत करते हैं। इस वर्ष 14 जनवरी, 2023 को रात्रि 08ः44 के बाद सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करेंगे, अतः मकर संक्रांति 15 जनवरी, 2023 को मनायी जाएगी।
इस दिन सुबह स्नान करने के बाद सूर्य देव, विष्णु जी व लक्ष्मी देवी की पूजा करनी चाहिए। इस दिन उड़द की दाल की खिचड़ी व तिल के लड्डू का दान करना चाहिए। गरीबों को कंबल-वस्त्र बांटने चाहिए। रंग-बिरंगे वस्त्र, विशेषकर पीले वस्त्र धारण करने चाहिए। पूरे भारत वर्ष में केवल महाराष्ट्र ऐसा प्रदेश है, जहां मकर संक्रांति के दिन काले वस्त्र धारण करने की परंपरा है। काली उड़द की दाल दान करने से शनि संबंधी दोष दूर होते हैं। दान करने से हमारे सभी पाप नष्ट होते हैं। इस अवसर पर सूर्य के प्राचीन मंत्र गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। यह मंत्र बहुत शक्तिशाली व सबसे पुराने वेद ऋग्वेद का सूर्य मंत्र है।
मकर संक्रांति के दिन मांस-मंदिरा और तामसिक भोजन से परहेज करें। इस दिन चावल, चना, मूंगफली, गुड़, तिल, उड़द की दाल इत्यादि से बनी सामग्री का सेवन करना चाहिए। इस दिन किसी गरीब या भिखारी को अपने घर से खाली हाथ न लौटाएं। जिन लोगों की कुंडली में सूर्य व शनि देव नीच के होकर बैठे हैं या मारक हैं अथवा शनि की साढ़े साती या ढैय्या चल रही है, तो वे शनि देव के सात रत्न अभिमंत्रित करके और ओम् शं शनैश्चराय नमः की सात माला पढ़कर बहते जल में प्रवाहित करें। जिन लोगों की कुंडली में सूर्य देव नीच अथवा मारक हैं, उन्हें ओम् घृणि सूर्याय नमः की सात माला पढ़कर, सूर्य देव के सात अभिमंत्रित रत्न प्रवाहित करने चाहिए। इस दिन पानी में एक चुटकी हल्दी डालकर परिवार के सभी लोग स्नान अवश्य करें। इस अवसर पर सभी को बधाई।
नोट-लेखक पूर्व में भारत सरकार और वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार के प्रथम श्रेणी के अधिकारी है तथा इन्होंने बान प्रस्थ आश्रम के आचारण एवं विचार को अपना लिया है तथा ईस्कान के पैट्रान भी है तथा अयोध्या में साधनाश्रम अयोध्या धाम के सहसंस्थापक में एक है।
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