एक देश एक चुनाव वर्तमान हालातों और बिना व्यापक तैयारी के नहीं है मुमकिन: माहरा

देहरादून, गढ़वाल का विकास डॉट कॉम। केंद्र सरकार द्वारा एक नेशन एक चुनाव पर कमेटी बना दी गई है, इस पर उत्तराखंड कांग्रेस के अध्यक्ष करन महारा ने अपनी प्रतिक्रिया दी है।

महारा ने कहा कि बिना तैयारी के आखिर एक देश एक चुनाव की सरकार को अचानक जरूरत क्यों पड़ गई? महारा ने कहा की वैसे यह नया नहीं, पुराना ही आइडिया है।

ऐसा लगता है की भाजपा इंडिया गठबंधन से डरी हुई है। वन नेशन, वन इलेक्शन को मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए लाया जा रहा है।

महारा ने कहा की सारी संसदीय मान्यताओं को यह सरकार तोड़ रही है। अगर विशेष सत्र बुलाना था तो सरकार को सभी विपक्षी पार्टियों से कम से कम अनौपचारिक तौर पर बात करनी चाहिए थी। महारा ने कहा की

वन नेशन-वन इलेक्शन या एक देश-एक चुनाव का मतलब हुआ कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हों। महारा ने बताया की आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।

महारा ने कहा की अगर सरकार को इस दिशा में आगे बढ़ना है तो संसद में इसके लिए संविधान संशोधन बिल लाना होगा। इसकी मंजूरी के बाद ही इस दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। महारा ने कहा कि यह पहली बार नहीं है जब यह मामला सामने आया है। 1999, 2015 और 2018 में तीन बार लॉ कमीशन ने इस पर अपनी रिपोर्ट दी। वहीं, इससे पूर्व 2016 में संसदीय समिति भी अपनी अंतरिम रिपोर्ट दे चुकी है। जब 2018 में यह मामला सामने आया था तो केंद्र ने विधि आयोग को पूरा मामला सौंप दिया था। विधि आयोग की ओर से इस पर पूरा रोडमैप तैयार किया गया है।

महारा ने कहा कि जब पूर्व में समूचे देश में एक चुनाव हुआ करते थे तब देश की जनसंख्या भी कम थी आज देश की जनसंख्या विकराल रूप ले चुकी है ऐसे में यह निर्णय कितना सार्थक साबित होगा यह मंथन योग्य है। महारा ने कहा कि लॉ कमीशन अपनी रिपोर्ट में पहले ही कह चुका है कि यदि एक देश एक चुनाव होता है तो चुनाव के दौरान होने वाले खर्चे में व्यापक स्तर पर इजाफा होगा। महारा ने देश की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के मद्देनजर सवाल करते हुए कहा कि क्या हम इस खर्च के लिए तैयार हैं

महारा ने कहा की राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को लोकसभा के साथ समन्वित करने के लिये राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को तदनुसार घटाया और बढ़ाया जाना पड़ेगा।लेकिन इसके लिये कुछ संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी।

महारा ने कहा की ‘एक देश-एक चुनाव’ की आवधारणा देश के संघात्मक ढाँचे के विपरीत सिद्ध हो सकती है। इसके अतिरिक्त चुनाव में बड़ी मात्रा में खर्च होने वाला धन भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले कारणों में सबसे ऊपर है।

महारा ने कहा एक देश एक चुनाव करने के लिए सबसे बड़ी कमी संसाधनों की आएगी। वर्तमान में मतदान करने के लिये प्रत्येक मतदान केंद्र पर एक EVM का उपयोग एक VVPAT मशीन के साथ किया जा रहा है। लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने पर इनकी संख्या दोगुनी हो जाएगी।

अतिरिक्त मतदान कर्मियों के साथ बेहतर और चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था की आवश्यकता होगी और यह काम केंद्रीय पुलिस बलों की संख्या बढ़ाए बिना करना संभव नहीं है।

एक साथ इतनी बड़ी संख्या में EVM और VVPAT मशीनों को सुरक्षित रखना भी एक बड़ी चुनौती होगा, क्योंकि निर्वाचन आयोग को वर्तमान में ही इन्हें सुरक्षित रखने की समस्या से जूझना पड़ रहा है।

महारा ने कहा की जब चुनाव का समय नज़दीक आता है तो मंत्रियों सहित पूरा सरकारी अमला बेहद व्यस्त हो जाता है, इसके साथ ही चुनाव आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य भी ठप पड़ जाते हैं। व्यापक चुनाव सुधार अभियान चलाने की आवश्यकता है। इसके तहत जनप्रतिनिधित्व कानून में सुधार, कालेधन पर रोक, राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण पर रोक, लोगों में राजनीतिक जागरूकता पैदा करना शामिल है। इसके लिये यह आम सहमति बनाने की ज़रूरत है कि क्या राष्ट्र को ‘एक देश-एक चुनाव’ की जरूरत है या नहीं। सभी राजनीतिक दलों को इस मुद्दे पर होने वाली बहसों में सहयोग करना चाहिये, इसके बाद ही जनता की राय को ध्यान में रखा जा सकता है। महारा ने कहां की लोकतंत्र में जनता ही जनार्दन होती है ऐसे में जनता की क्या राय है यह जानना बहुत जरूरी है। एक परिपक्व लोकतंत्र होने के नाते भारत इसके बाद लिये गए किसी भी फैसले पर अमल कर सकता है।

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