श्रीनिवास कटिकिथला, निदेशक, एलबीएसएनएए
देहरादून। सिविल सेवा दिवस, जो प्रत्येक वर्ष 21 अप्रैल को मनाया जाता है, राष्ट्रीय सिविल सेवा के विचार का एक उत्सव है। मणिबेन पटेल ने अपनी डायरी में लिखा, “बापू ने दिल्ली में नये सेवा भर्ती स्कूल का उद्घाटन किया।“ यह एक मर्मस्पर्शी क्षण था। सरदार पटेल ने 1947 में नव गठित भारतीय प्रशासनिक सेवा की शुरुआत की, “पूरी तरह से भारतीय अधिकारी के साथ और पूरी तरह से भारतीय नियंत्रण के अधीन … अतीत की परंपराओं और कुप्रभावों के बिना, राष्ट्रीय सेवा की अपनी वास्तविक भूमिका को अपनाने के लिए स्वतंत्र।“ उन्होंने एक मूलमंत्र दिया, जो प्रत्येक सिविल सेवा अधिकारी को प्रेरित कर सकता है: “हमें भारत में प्रत्येक सिविल सेवा अधिकारी से सर्वश्रेष्ठ की अपेक्षा करने का अधिकार है, चाहे वह किसी भी जिम्मेदारी के पद पर क्यों न हो। यह आपके लिए नहीं है कि आप अपने कार्य को विशुद्ध रूप से किसी अन्य दृष्टिकोण से या पूरी तरह से स्वार्थ से वशीभूत होकर करें, चाहे वह अधिकारी कितना भी प्रबुद्ध क्यों न हो। आपका सर्वप्रथम विचार यह होना चाहिए कि समग्र रूप से भारत के कल्याण में कैसे योगदान दिया जाए।“ इसलिए, सरदार पटेल के वाक्यांश ‘स्टील फ्रेम’ को एक कठोर, प्रतिबंधात्मक और नियम-बद्ध औपनिवेशिक नौकरशाही के नकारात्मक अर्थ से जोड़ना हास्यास्पद है।
1921 के कॉमन्स डिबेट में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड लॉयड जॉर्ज द्वारा इंपीरियल सिविल सर्विस (आईसीएस) के वर्णन के दौरान ‘स्टील फ्रेम’ को सिविल सेवा की लोकप्रिय संस्कृति और स्व-परिकल्पना दोनों को परिभाषित करने के लिए प्रयुक्त किया गया था। इसलिए, राष्ट्रीय लोकाचार में निहित एक सिविल सेवा को तैयार करने की शुरूआती सरकारों की चिंताएं, ध्यान-केंद्र से विचलित हो गयीं, क्योंकि वह देश-विभाजन का अशांत दौर था। यह काम अधूरा रह गया।
सिविल सेवा के लिए एक भारतीय लोकाचार को परिभाषित करने का कार्य भारत की स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के संबोधन के साथ शुरू हुआ, जहां उन्होंने भारत को ‘अमृत महोत्सव’ से ‘अमृत काल’ की ओर ले जाने के लिए, देश की दृष्टि और ‘पंच प्रण’- पांच संकल्प – की व्याख्या की। दूसरा संकल्प अर्थात औपनिवेशिक मानसिकता को समाप्त करने के लिए स्व-परिकल्पना के पुनरीक्षण और सिविल सेवाओं से जुड़ी औपनिवेशिक कार्य-संस्कृति को हटाने की जरूरत है। एक प्रतिबिम्ब की शक्ति और सकारात्मक दृष्टि, दोनों मुक्तिदायक हैं और सुधार करने में सक्षम हैं। लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (एलबीएसएनएए) ने सिविल सेवा को एक जीवित इकाई – पीपल वृक्ष – जिसने प्राचीन काल से हमारी सभ्यतागत दृष्टि को अनुप्राणित किया है, के रूप प्रस्तुत किया। सिविल सेवा, ‘भावना वृक्ष’ के रूप में, “सेवा और सहानुभूति” का एक वृक्ष है। इस प्रकार, यह आत्म-आश्वासन और उपनिवेशवाद की भावना से मुक्ति की सकारात्मक पुनर्पुष्टि है।
नागरिकों के कल्याण में स्वर्ग-तुल्य आराम की तलाश के लिए प्रेरक कुलदेवता, शक्तिशाली स्वर्गारोहिणी की अग्रभूमि में स्थापित अकादमी, भावना वृक्ष की एक प्रतीक के रूप में परिकल्पना करती है, जो निस्वार्थ सेवा और कर्तव्य के प्रति समर्पण के कालातीत गुणों का प्रतिनिधित्व करता है। अमृत काल के लिए एक आदर्श सिविल सेवा अधिकारी की विशेषताओं और अवधारणा को पहली बार 31 अक्टूबर 2019 को स्टैच्यू ऑफ यूनिटी में प्रधानमंत्री द्वारा प्रतिपादित किया गया था।
ये हैं – (1) सक्रिय और विनम्र (2) पेशेवर और प्रगतिशील (3) ऊर्जावान और सक्षम (4) पारदर्शी और तकनीक-सक्षम (5) रचनात्मक और सकारात्मक (6) कल्पनाशील और अभिनव। भविष्य के लिए तैयार सिविल सेवा के विचार में समग्रता है। एक पूरी सरकार और मिलकर काम करने का दृष्टिकोण, भविष्य का अंदाज लगाना, कार्य-प्रणाली में सहयोगी, संवाद व कार्यों के प्रति भागीदारी की भावना तथा स्वभाव से अभिनव। दूर-दराज के क्षेत्रों में लोगों की सेवा करने वाले ‘भावना वृक्ष’ की यही प्रकृति है।
पूर्व औपनिवेशिक मानसिकता को समाप्त करना, भारतीय मूल्यों के प्रति गर्व की भावना को साझा करना और राष्ट्र-प्रथम दृष्टिकोण के साथ कर्तव्य-बद्ध सिविल अधिकारियों का समूह, सिविल अधिकारियों की नई नैतिकता है, जो इसके पवित्र दरवाजे से, “मसूरी वाला कर्मयोगी” के रूप में बाहर निकलते हैं। अकादमी गीत के रिंगिंग नोट्स, हाओ धर्मेते धीर, हाओ करोमेते बीर, हाओ उन्नतो शिर-नहीं भाय, कार्य करने के लिए उनका आध्यात्मिक आह्वान है।
‘भावना वृक्ष’ के लोकाचार की याद में “सेवा का मार्ग” है, जिसे अकादमी के प्रतिष्ठित डायरेक्टर्स स्क्वायर के चारों ओर बनाया गया है। मार्ग कालानुक्रमिक रूप से व्यवस्थित, भली-भांति बंद समय कैप्सूल की एक श्रृंखला है, जिनमें 2021 में शुरू होने और 2047 में समाप्त होने वाले सिविल सेवा प्रशिक्षुओं के क्रमिक बैचों के उद्देश्य के बयानों को समाहित किया जा रहा है। इन प्रतिबद्धता बयानों को विकसित भारत के तहत 15 अगस्त, 2047 को, भारतीय सदी की सुबह में अनावरण के लिए संरक्षित किया जा रहा है। ‘भावना वृक्ष’ के लिए – अपने स्वामी, अर्थात भारत के लोगों के एक सक्षम सेवक के रूप में खुद को मुक्त करने का दिन।
इस प्रकार, पूर्ववर्ती औपनिवेशिक ‘स्टील फ्रेम’ प्रतिमान को दरकिनार करते हुए और सरदार के आह्वान को साकार करते हुए, “…अब, आप अपने ही लोगों की सेवा कर रहे हैं। तो अब, आप अपने दिल, दिमाग और आत्मा के साथ सेवा कर सकते हैं… आप अपने लोगों की सेवा करके वास्तव में भारतीय होंगे।”