कृषि कानूनों के विरोध में कांग्रेस का प्रदर्शन: संवैधानिक संस्थाओं पर हमला

पिछले कुछ समय से देश में कांग्रेस सहित कुछ विपक्षी दल व अन्य कतिपय संगठन द्वारा देश की मूल संवैधानिक व्यवस्था पर जिस प्रकार गंभीर प्रहार कर रहे हैं वह देश के लिए खतरा है।कांग्रेस द्वारा शुक्रवार को कृषि कानूनों के खिलाफ पूरे देश में किया गया प्रदर्शन और उत्तराखंड सहित देश के विभिन्न राज्यों में राजभवनों को बनाया गया निशाना इसी ख़तरनाक प्रवृत्ति का परिचायक है।

वैसे तो कांग्रेस जिसने पिछले लोकसभा चुनाव में कृषि क़ानून लाने का वायदा अपने घोषणापत्र में किया था द्वारा कृषि क़ानूनों का किया जा रहा विरोध नैतिक रूप से ही ग़लत है लेकिन प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के हर निर्णय का विरोध करने की अपनी आदत के चलते कांग्रेस कृषि क़ानूनों के विरोध में खड़ी है। इसे हम उसकी निराशा के रूप में समझ सकते हैं।लेकिन आज का विरोध प्रदर्शन तो सही मायनों में देश संवैधानिक प्रमुख व सर्वोच्च न्यायालय के ख़िलाफ़ है जो स्वयं में बहुत गम्भीर मामला है।

देश की संवैधानिक व्यवस्था पर कांग्रेस द्वारा शुक्रवार को किए गए हमले पर कांग्रेस को जवाब देना चाहिए कि जब सर्वोच्च न्यायालय ने कृषि कानूनों के प्रसंग को अपने हाथ में लिया है और इनके लागू करने पर रोक लगाने के साथ कमेटी भी बना दी है तो इस प्रदर्शन का क्या औचित्य था। क्या यह न्यायालय का अपमान नहीं ?

साथ ही कांग्रेस को यह भी जवाब देना चाहिए कि इस प्रदर्शन में राजभवनों को निशाने पर क्यों लिया लिया गया? राज्यपाल , राष्ट्रपति के प्रतिनिधि होते हैं और उनके ख़िलाफ़ प्रदर्शन का मतलब हुआ देश के संवैधानिक प्रमुख के ख़िलाफ़ प्रदर्शन। कांग्रेस यह कौन सी परम्परा स्थापित कर रही है ? क्या वह यह संदेश देना चाहती है कि अगर उसकी बात चाहे वह बात पूरी तरह ग़लत ही क्यों न हो को यदि नहीं माना गया तो वह संवैधानिक प्रमुख से लेकर सर्वोच्च न्यायालय किसी की भी परवाह नहीं करेंगे!

क्या यह सब अराजकता नहीं है ? इससे जुड़ा एक और गम्भीर पहलू यह है किसान आंदोलन की आड़ में अपना एजेण्डा लेकर सक्रिय हुए अलगाववादी ताकतों के साथ जब कांग्रेस खड़ी दिखाई देती है तो ख़तरा बढ़ा हुआ दिखाई देता है । इस अराजक स्थिति से अभी से सावधान होना ज़रूरी है।

लेखक भाजपा उत्तराखंड के उपाध्यक्ष हैं व गढ़वाल मण्डल विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष हैं।

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