वनाग्नि की आपदा से निपटने के सारे सरकारी दावे जमीनी स्तर पर फेल: धस्माना

– वनाग्नि की आपदा को नियंत्रित करने व इसका शमन करने में अक्षम साबित हुई राज्य सरकार

देहरादून, गढ़वाल का विकास डॉट कॉम। उत्तराखण्ड राज्य में विगत 01 माह से वनाग्नि की आपदा से राज्य की वन तथा जैव सम्पदा का अत्यधिक नुकसान हो चुका है। राज्य के 1500 हे० से अधिक जंगल आग लगने से नष्ट हो चुके हैं। वनाग्नि की इस आपदा से राज्य के पहाडी क्षेत्र वर्तमान में भयावह स्थितियों से गुजर रहे हैं। वनाग्नि की इस आपदा को नियंत्रित करने तथा इसका शमन करने में, राज्य सरकार पूर्ण रूप से अक्षम साबित हुई है। वनाग्नि की आपदा से निपटने के सारे सरकारी दावे जमीनी स्तर पर फेल हैं।

यह बात आज अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य व उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने अपने कैम्प कार्यालय में आयोजित पत्रकार वार्ता में कही। उन्होंने कहा कि वनाग्नि की आपदा में उत्तराखण्ड सरकार के आपदा प्रबन्धन विभाग एवं वन विभाग के मध्य कोई समन्वयन नहीं है। किसी भी आपदा का प्रबन्धन करने में पूर्व तैयारी किये जाने की आवष्यकता होती है। आपदा प्रबन्धन विभाग में कार्य कर रहे विषेषज्ञों तथा सचिव व उच्च स्तर के अधिकारियों को भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) तथा अन्य वैश्विक संस्थाओं की रिपोर्ट में इस वर्ष औसत से अधिक तापमान की जानकारी दी गई थी. परन्तु आपदा प्रबन्धन विभाग में Forest Fire को लेकर वन विभाग के साथ किसी भी प्रकार का समन्वयन पूर्व से नहीं किया गया तथा कोई भी तैयारी बैठक या जमीनी स्तर पर ससमय कार्ययोजना बनाये जाने के प्रयास नहीं किये गये।

उन्होंने कहा कि वन विभाग के द्वारा Forest fire हेतु बजट की माँग की गयी थी, परन्तु सचिव आपदा प्रबन्धन द्वारा इस बजट को ससमय वन विभाग को उपलब्ध नहीं करवाया गया। इस सम्बन्ध में अभी कुछ समय पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड की बैठक में मुख्य सचिव उत्तराखण्ड द्वारा सचिव आपदा प्रबन्धन को समय से बजट उपलब्ध नहीं कराये जाने पर नाराजगी जाहिर की गयी थी। उन्होंने कहा कि Forest fire को नियंत्रित करने के लिए वन विभाग के फील्ड कार्मिकों के पास Basic Tools ही नहीं हैं। यहाँ तक कि DM/DFO तक के अधिकारी पत्तों के झाडू से आग को बुझा रहे हैं और ऐसे Video भी Social Media पर दिख रहे हैं। वन कार्मिकों के पास Basic जूते और Firefighting Suit तक नहीं हैं और ये कार्मिक अपनी जान जोखिम में डालकर आग को नियंत्रित कर रहे हैं। जहाँ SDRMF के आपदा बजट में करोड़ों रूपये अवांछनीय व छोटे-मोटे सिविल कार्यों पर खर्च कर दिये गये हैं, क्या वहाँ आपदा विभाग के पास इतना भी बजट नहीं है कि वनाग्नि आपदा हेतु Basic सामग्री क्रय करने हेतु वन विभाग को सहायता दी जाए।

उन्होंने कहा की वनाग्नि की इस भयावह आपदा के बाद की परिस्थितियाँ भी उत्तराखण्ड राज्य के लिए नई आपदाओं के होने की आपंका को प्रबल करेगी। उन्होंने कहा कि Forest Fire Survey of India (FSI) के द्वारा आपदा प्रबन्धन विभाग तथा वन विभाग को लगातार Fire Alerts भेजे गये, परन्तु इसके बावजूद भी इन जंगलों को जलने से सरकार बचा नहीं पाई। इसका मुख्य कारण विभागों के पास कोई ठोस कार्ययोजना का न होना तथा आपसी समन्वयन का अभाव है। उन्होंने कहा कि वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के एक पूर्व जाने माने वैज्ञानिक श्री पी.एस. नेगी ने बताया है कि वनाग्नि के कारण हिमालय का पूरा Eco-system प्रभावित हुआ है। आग के कारण उठे धुएं से हिमालयी ग्लेषियरों में Black Carbon की मात्रा बढ़ गई है। इस Black Carbon के कारण ग्लेषियरों के पिघलने की गति तेज हो जायेगी तथा यदि मानसून के दौरान अत्यधिक वर्षा हिमालयी क्षेत्र में हुई तो राज्य में बड़ी आपदा घटित हो सकती है। इस सम्बन्ध में भी सरकार की तैयारी आधी अधूरी ही नजर आ रही है।

श्री धस्माना ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण का भवन तो तैयार हो गया है, परन्तु वर्तमान तक वहाँ राज्य आपातकालीन परिचालन केन्द्र नहीं बन पाया है। पूरा आपदा प्रबन्धन विभाग आधा सचिवालय व आधा नये भवन से संचालित हो रहा है। उन्होंने कहा कि जून माह से राज्य में मानसून सक्रिय हो जाएगा तथा चारधाम यात्रा भी चरम पर होगी। अतः यदि सरकार समय रहते आपदा प्रबन्धन तंत्र को सक्रिय नहीं करती तो सरकार मानसून में भी आपदाओं का सही प्रबन्धन नहीं कर पाएगी।

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